विश्व भाषा की जननी है संस्कृत इसे समृद्ध करने की आवश्यकता- जगदीश देशमुख
बालोद। जब जब भारतीय शिक्षा में बदलाव आया है या नई शिक्षा नीति का निर्धारण हुआ है तब तक भारतीय शिक्षा नीति में प्रस्थानत्रयी की आवश्यकता हुई है।
प्रस्थानत्रयी अर्थात गीता ,उपनिषद एवं ब्रह्म सूत्र से है ।ब्रह्म सूत्र में भारतीय दर्शन और शिक्षा की तमाम अवधारणाएं समाहित है ।लॉर्ड मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने भारतीय शिक्षा और संस्कृति को बुरी तरह तहस-नहस किया और हमारे प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरुकुल की अवधारणा नष्ट होती गई और अब अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा ने हमें नितांत भौतिकवादी बना दिया है लेकिन प्रस्थानत्रयी के अवधारणा के अनुरूप भारतीय संस्कृति की शिक्षा को पूर्ण वैज्ञानिकता के साथ समृद्ध और संस्कार युक्त बनाने की शिक्षा शिशु मंदिर में दी जा रही है । उक्ताशय के विचार सरस्वती शिशु मंदिर पूर्व माध्यमिक शाला कोबा के तत्वाधान में आयोजित 10 दिवसीय नवीन आचार्य प्रशिक्षण शिविर में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में दूरसंचार भारत सरकार के सदस्य जगदीश देशमुख ने व्यक्त किए।
श्री देशमुख ने कहा कि संस्कृत विश्व की अति प्राचीन वैदिक भाषा है जिसमें धर्म-दर्शन अध्यात्म के साथ पूर्ण वैज्ञानिक जीवन मूल्य समाहित है ।यह विश्व भाषा की जननी है लेकिन संस्कृत भाषा हासिये पर है इसे प्रथम भाषा का दर्जा मिल जाना चाहिए जिससे हम प्राचीन गौरव को हासिल कर सके ।प्रशिक्षण शिविर को सियाराम सार्वा ,बीआर बेल्सर,संजय दुबे ने संबोधित किया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता सरपंच यामनी कोठारी ने की ।विशेष अतिथि के रूप में ढाल सिंह साहू ,सोहन तिवारी ,कामदेव साहू, नरेंद्र साहू ,दीपक हिरवानी ,अरुण साहू ,उपेंद्र साहू ,देवेंद्र साहू अन्य थे। प्रशिक्षण में 50 आचार्य भाग ले रहे हैं। प्रधानाचार्य विष्णु प्रसाद सिंह आर्य सहित विद्यालय परिवार प्रशिक्षण को सफल बनाने में लगे हुए हैं।