पेसा एक्ट पूरे छत्तीसगढ़ में लागू होना आदिवासियों के संघर्षों की जीत, सर्व आदिवासी समाज अध्यक्ष राजेंद्र राय ने जताया सीएम का आभार
बालोद। विश्व आदिवासी दिवस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा सर्व आदिवासी समाज के समक्ष जानकारी दी गई है कि अब पेसा एक्ट पूरे छत्तीसगढ़ में लागू हो गया है। पहले यह कुछ क्षेत्रों में ही लागू था। लेकिन अब यह पूरे छत्तीसगढ़ में प्रभावशील हो गया है। पेसा के पूरे छत्तीसगढ़ में लागू होने पर बालोद जिले के सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष व गुंडरदेही क्षेत्र के पूर्व विधायक राजेंद्र राय ने इसे आदिवासियों के संघर्षों की जीत बताया। उन्होंने कहा कि 2009 से इस मुद्दे को लेकर आदिवासी समाज संघर्ष करता रहा है। संबंधित सरकारों से इसे पूरे छत्तीसगढ़ में लागू करने को लेकर मांग की जाती रही है। अब जाकर उनका संघर्ष पूरा हुआ। इसके लिए हम समाज की ओर से लगातार मांग कर रहे थे। विगत दिनों जिला प्रशासन को भी ज्ञापन सौंपा गया था।
मुख्यमंत्री के नाम से भी पत्र लिखे गए थे। उन्होंने बताया कि केंद्रीय बॉडी में मौजूद आईएएस, आईपीएस अफसरों सहित वरिष्ठ जजों की टीम से वर्तमान सरकार के अफसरों ने मार्गदर्शन लिया। कुछ संशोधन हुए, कुछ नए नियम जोड़े गए और अंततः छत्तीसगढ़ में पूरे छत्तीसगढ़ में पेसा एक्ट को लागू करने अंतिम रूप दिया गया और अब यह कानून लागू हो गया है। इससे आदिवासियों का भला होगा। उनके अधिकार बढ़ेंगे। ग्राम सभाओं में उनका वर्चस्व होगा। पहले जहां आदिवासियों की आवाजों को दबा दिया जाता था, उनकी मांगों को कुचला जाता था। अब ऐसा नहीं होगा। ग्राम सभा में अधिकतम अधिकार आदिवासी समुदाय के पास होगा। सरकार भी अपने फैसले पर नहीं लाद सकेगी। पहले आदिवासियों की सहमति जरूरी होगी। पेसा एक्ट के पूरे छत्तीसगढ़ में लागू होने पर सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष राजेंद्र राय ने समाज के सभी लोगों को बधाई दी।
किसकी सहमति से कानून होगा लागू :
जंगली इलाकों में किसी काम के लिए सरकार की ही नहीं बल्कि आदिवासियों की सहमति भी जरुरी होगी. इस कानून के लागू होने से उन इलाकों में सरकार की मनमर्जी के अलावा उन क्षेत्र के लोगों की सहमति से ही काम होंगे. उनको अधिकार दिए जाएंगे. कमेटियों, समितियों और आदिवासी वर्ग से बात करके ही पेसा कानून बनाया गया है.
क्या है पेसा अधिनियम, 1996 :
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 या पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था. यह कानूनी रूप से जनजातीय समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से खुद को नियंत्रित करने के अधिकार को मान्यता देता है. प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी स्वीकार करता है. पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है. इसमें नीतियों को लागू करने वाली प्रक्रियाएं और कर्मी, लघु (गैर-लकड़ी) वन संसाधनों, लघु जल निकायों और लघु खनिजों पर नियंत्रण रखने, स्थानीय बाजारों का प्रबंधन, भूमि के अलगाव को रोकने और अन्य चीजों के साथ नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना शामिल है।
एमपी के तत्कालीन सांसद का था प्रयास
गौरतलब है कि आदिवासियों के मसीहा माने जाने वाले दिवंगत नेता व एमपी के तत्कालीन सांसद दिलीप सिंह भूरिया के प्रयासों से 1995 में अधिसूचित क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदाय के हक अधिकार की रक्षा के लिए एक कमिटी बनी थी, महीनों तक गहन अध्ययन के बाद पेसा एक्ट 1996 में अस्तित्व में आया। जब वे केंद्र में अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे, तब भूरिया कमिटी ने उन्ही के निर्देशन में इसे कानून का रूप दिया था। वे सांसद रहते दुनिया से चले गए, उनकी सरकार होते हुए भी वे इस कानून को अधिसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं करा सके, इसका उन्हें आखरी तक मलाल रहा। एमपी में भी इस एक्ट को लागू करने की मांग उठी है।