कमरौद की मां काली को देखने ऐसे जुटे लोग कि महाशिवरात्रि मेले भीड़ का रिकॉर्ड टूटा, 2 किलोमीटर तक बालोद अर्जुंदा मार्ग पर रहा ट्रैफिक जाम, देखें शिवरात्रि पर प्रमुख स्थलों की तस्वीरें व कैसा रहा माहौल?
बालोद। बालोद जिले के गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम कमरौद जो बालोद ब्लाक के सीमा पर भी है, में दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर परिसर में नवनिर्मित मां काली की ऊंची प्रतिमा को निहारने व दर्शन करने बालोद से ही नहीं बल्कि कई जिले से लोग पहुंचे थे। राजनांदगांव के पाताल भैरवी के बाद यह काली मां की मूर्ति बड़ी मूर्ति के रूप में जानी जा रही है। ऊंचाई की बात करें तो यह पाताल भैरवी की मूर्ति से भी दो से तीन फीट ज्यादा है। महाशिवरात्रि मेला में वैसे तो हर साल भीड़ रहती है। लेकिन इस साल तो मानो भीड़ का रिकार्ड ही टूट गया।
बालोद अर्जुंदा मार्ग पर स्थित कमरौद मंदिर के आसपास मुख्य मार्ग पर लगभग 2 किलोमीटर तक लंबा जाम लगा रहा। दोपहर 2:30 बजे से ही ट्रैफिक जाम की समस्या रही। लोग देर रात तक इस जाम में फंसे रहे। भीड़ इतनी थी कि गाड़ियां पार्क करने के लिए कोई जगह नहीं बची थी।
लोग हनुमान के दर्शन के साथ नवनिर्मित मां काली की मूर्ति के दर्शन को आतुर थे और लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी मंदिर परिसर स्थित शिवलिंग की परिक्रमा भी लोगों ने किए तो वहीं मेले का आनंद उठाया गया। बता दें कि लगभग चार लाख की लागत से मंदिर समिति द्वारा दानदाताओं की मदद से इस मां काली की मूर्ति का निर्माण मंदिर परिसर के गार्डन के बीचो बीच किया गया है। जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मंदिर समिति द्वारा इसे छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची काली प्रतिमा होने का दावा किया जा रहा है। ज्ञात हो कि इस संबंध में हमने प्रमुखता से खबर प्रसारित की थी। जिसे पढ़ने के बाद लोगों में उत्सुकता भी थी कि वह प्रत्यक्ष इस मां काली की मूर्ति को निहारे। इस वजह से भी लोग परिवार सहित यहां पहुंचे थे। लोग दर्शन करने के साथ-साथ मां काली की मूर्ति के साथ सेल्फी लेने में भी जुटे थे।
इधर जगन्नाथपुर के 11वीं शताब्दी के प्राचीन शिव मंदिर में भी हुई पूजा अर्चना
ग्राम जगन्नाथपुर स्थित 11वीं शताब्दी के प्राचीन शिव मंदिर में भी पूजा-अर्चना का कार्यक्रम हुआ। गांव के नवविवाहित जोड़ों ने विशेष पूजा-अर्चना में हिस्सा लिया। सरपंच अरुण साहू के नेतृत्व में इस प्राचीन मंदिर को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। सिर्फ नाम के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। लेकिन वहां देखरेख के नाम पर विभागीय तौर पर कुछ नहीं हो पा रहा है। पंचायत प्रशासन व सरपंच अरुण साहू सहित ग्रामीणों द्वारा इस स्थल को सहेजने का बीड़ा उठाया गया है। जिसके तहत द्वितीय वर्ष यहां महाशिवरात्रि पूजन उत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें लोगों की भीड़ जुटी। प्रसाद के रूप में खीर पूड़ी का वितरण भी हुआ। सरपंच अरुण साहू ने बताया कि आने वाले साल में और भी वृहद तौर पर महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। बांध तालाब व आसपास के इलाके जो टापूनुमा है, उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित करने की तैयारी है। इसके लिए कार्य योजना बनाई जा रही है।
सरपंच ने बताया कि बुजुर्गों से सुनी आ रही कहानी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जगदलपुर के राजा रानी के द्वारा उड़ीसा के पुरी यात्रा के वापसी के दौरान किया गया था। पूर्व में इस गांव का नाम डुआ था। जगन्नाथ पुरी की तरह यहां का माहौल भक्ति पूर्ण होने के कारण इसका नाम जगन्नाथपुर किया गया। पहले यहां दो शिव मंदिर थे। जिसमें एक मंदिर नष्ट हो चुका है और एक बचा हुआ है। जिसे सहेजने का प्रयास किया जा रहा है।
बूढ़ादेव मंदिर में दर्शन करने के लिए जुटी भक्तों की भीड़,रामायण में रमे लोग
इसी तरह बूढ़ादेव भोथली के मंदिर में भी भक्तों की कतार लगी रही तो वही मंदिर प्रांगण में धार्मिक आयोजनों ने समा बांधा।
स्वयं सरपंच व मंदिर के संरक्षक केशवराम गंधर्व भी रामायण में हारमोनियम बजाने बैठे। राम भक्ति की बयार यहां बहती रही तो रात्रि में लोगों ने दुष्यंत हरमुख कृत रंग झरोखा सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आनंद उठाया। ज्ञात हो कि भोथली के इस स्थल की मान्यता सर्पदंश के इलाज को लेकर है। जहां दूर-दूर से लोग इलाज करवाने के लिए आते हैं।
तो वहीं लोगों ने शिवरात्रि पर व्रत रखकर यहां पूजा अर्चना की। शिवलिंग में दूध दही अर्पित किया।
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