राहत भरी खबर- ग्रीष्मकाल में निस्तारी तालाबों को भरने तथा स्थानीय निकायों को पेयजल आपूर्ति हेतु बालोद जिले के इन जलाशयों से दिया जाएगा पानी

बालोद– ग्रीष्मकाल में निस्तारी तालाबों को भरने तथा स्थानीय निकायों को पेयजल आपूर्ति हेतु जिले के जलाशयों से जलप्रदाय किया जाएगा। जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता ने बताया कि जिले में स्थित 04 प्रमुख बांधों में से तांदुला जलाशय में वर्तमान में 153 मि.घ.मी. 50 प्रतिशत, खरखरा जलाशय मंे 95 मि.घ.मी. 68 प्रतिशत, गोंदली जलाशय में 44 मि.घ.मी. 46 प्रतिशत एवं मटियामोती जलाशय में 25 मि.घ.मी. 98 प्रतिशत जलभराव उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि इन जलाशयों से प्रतिवर्ष ग्रीष्मकाल में निस्तारी तालाबों को भरने तथा स्थानीय निकायों को पेयजल आपूर्ति हेतु जल प्रदाय किया जाना निर्धारित है। तांदुला जलाशय से ग्रीष्मकाल में बालोद, दुर्ग एवं बेमेतरा जिला के लगभग 1000 निस्तारी तालाबों को भरने हेतु 100 मि.घ.मी., नगर पालिका परिषद बालोद को पेयजल आपूर्ति हेतु 03 मि.घ.मी., जलाशय में सुरक्षित जलभराव 35 मि.घ.मी. रखे जाने एवं वाष्पीकरण से जल हानि 15 मि.घ.मी. के पश्चात् रबी सिंचाई हेतु शेष जल उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार खरखरा जलाशय से ग्रीष्मकाल में लगभग 200 तालाबों को भरे जाने हेतु 20 मि.घ.मी., भिलाई इस्पात संयंत्र को जलआपूर्ति हेतु 25 मि.घ.मी., सी.एस.आई.डी.सी. बोरई को जल प्रदाय हेतु 10 मि.घ.मी., नगर निगम, दुर्ग एवं भिलाई को पेयजल आपूर्ति हेतु 20 मि.घ.मी., जलाशय मंे सुरक्षित जल भराव 10 मि.घ.मी. एवं वाष्पीकरण से जल हानि 10 मि.घ.मी. के पश्चात् रबी सिंचाई हेतु शेष जल भराव उपलब्ध नहीं है। गोंदली जलाशय से ग्रीष्मकाल में 50 तालाबों को भरे जाने हेतु 10 मि.घ.मी., जलाशय में संरक्षित जल भराव हेतु 20 मि.घ.मी. एवं वाष्पीकरण से जल हानि 05 मि.घ.मी. जलभराव सुरक्षित रखे जाने की आवश्यकता है। मटियामोती जलाशय से ग्रीष्मकाल में 55 निस्तारी तालाबों को भरे जाने हेतु 07 मि.घ.मी., नगर निगम राजनांदगांव को पेयजल आपूर्ति हेतु 05 मि.घ.मी., जलाशय मंे सुरक्षित जल भराव 05 मि.घ.मी. तथा वाष्पीकरण से जल हानि 03 मि.घ.मी. की आवश्यकता होगी।
कार्यपालन अभियंता ने बताया कि रबी धान की सिंचाई में खरीफ सिंचाई की तुलना में दोगुना ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही कृषि भूमि के सतत् गीले रहने एवं एक ही फसल का उत्पादन लगातार किए जाने के कारण जमीन की उर्वरता शनैः-शनैः कम हो जाती है। उन्हेांने बताया कि जलाशयों से ग्रीष्मकालीन धान हेतु जल प्रदाय से सिंचाई उपरांत जलाशय लगभग खाली हो जाते हैं एवं वर्षाकाल में अवर्षा की स्थिति उत्पन्न होने पर आगामी खरीफ की सिंचाई हेतु जलाशयों में जलभराव उपलब्ध नहीं रहता, जिससे खरीफ सीजन में सिंचाई व्यापक रूप से प्रभावित हो जाती है एवं समय पर कृषकों को सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। ग्रीष्मकाल में धान के बदले अन्य फसल जैसे-गेहूं, चना, मूंगफली, दलहन-तिलहन, सब्जी आदि की खेती किए जाने से धान की तुलना में दोगुना ज्यादा रकबे में सिंचाई किया जा सकता है, साथ ही फसल परिवर्तन से जमीन की उर्वरता में भी वृद्धि होती है। उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत कर शासन द्वारा धान के रकबे में कमी कर दलहन-तिलहन की फसलों को प्रोत्साहित करने हेतु इस वर्ष ग्रीष्मकालीन धान की सिंचाई हेतु जल प्रदाय नहीं करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में जिले में स्थित जलाशयों से ग्रीष्मकालीन धान की सिंचाई हेतु जल प्रदाय नहीं किया जाएगा।

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