बालोद में भी चला चिपको आंदोलन की तर्ज पर प्रदर्शन, तरौद बायपास में सड़क बनाने पेड़ों को काटने की तैयारी, विरोध कर पर्यावरण प्रेमियों ने कहा पहले पेड़ लगाओ

बालोद। बालोद जिला मुख्यालय में भी चिपको आंदोलन की तर्ज पर पेड़ों से चिपक कर उन्हें बचाने की अपील की गई। यह प्रदर्शन जिले के पर्यावरण प्रेमियों दल्ली के ग्रीन कमांडो वीरेंद्र सिंह व देवरी के पर्यावरण प्रेमी भोज साहू के नेतृत्व में हुआ। प्रदर्शन तरौद दल्ली राजहरा मार्ग बायपास को लेकर था। जहां पर लगभग 3000 पेड़ों को काटकर सड़क बनाने की तैयारी है। इसकी जानकारी मिलने पर पर्यावरण प्रेमियों ने मांग किया कि सड़क बनाने के लिए हरियाली नष्ट ना करें। अगर पेड़ काटना जरूरी है तो पहले पेड़ लगाएं। विकास के लिए विनाश ना करें। पर्यावरण प्रेमियों ने बालोद में तख्ती लेकर रैली निकालकर लोगों और शासन प्रशासन को पेड़ ना काटने, पेड़ लगाने, वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की अपील की।

तो वही उक्त प्रस्तावित मार्ग में पहुंचकर पेड़ों से चिपक कर उनके संरक्षण को लेकर भी संदेश दिया। कलेक्टर के नाम से नायब तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा गया। जिसमें कहा गया कि सड़क चौड़ीकरण के नाम पर तरौद दैहान के जंगल से करीब 2900 पेड़ों को काटने की जानकारी है। एक तरफ शासन प्रशासन पेड़ लगाने की मुहिम चला रही है। लेकिन इस तरह विकास के नाम पर जंगलों की कटाई करके विनाश किया जा रहा है। जिसे हम बालोद जिले के पर्यावरण प्रेमियों को गहरा आघात लगा है। इसलिए मांग की जा रही है की इस जंगल को कटने से बचाने के लिए तत्काल रोका जाए। जिससे पर्यावरण सुरक्षित हो सके। मांग करने वालों में प्रमुख रूप से ग्रीन कमांडो वीरेंद्र सिंह, पर्यावरण प्रेमी भोज साहू, दीपक थवानी, राजकुमार साहू, दुनेश्वर डड़सेना, प्रदीप साहू शामिल है।

क्या है चिपको आंदोलन

चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।
यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। इस आन्दोलन की शुरुवात 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी। पेड़ों से चिपक कर उन्हें कटने से बचाने की मांग की जाती थी, आंदोलन होता था इसलिए इसका नाम चिपको आंदोलन पड़ा।

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