हद है- कोरोना से हुई मौत तो सरपंच व ग्रामीणों ने शव गांव लाने नहीं दिया, बालोद में जन सहयोग से पालिका व प्रशासन ने कराया अंतिम संस्कार, बचा ली मानवता
बालोद। बालोद जिले में मानवता उस वक्त तार-तार हो रही थी जब ग्राम आमाडुला व सोरम भटगांव के सरपंच व वहां के ग्रामीणों द्वारा एक कोरोना से मृतक के शव को गांव के मुक्तिधाम में लाने से मना कर दिया गया। लेकिन इस तार-तार होती मानवता को बालोद के लोगों ने बचा लिया। बालोद नगर पालिका प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग के सिविल सर्जन डॉ एसएस देवदास सहित शहर के युवाओं द्वारा मानवता की अनूठी मिसाल पेश करते हुए बालोद के मुक्तिधाम में कोरोना गाइडलाइंस के अनुसार उक्त मृतक के शव का अंतिम संस्कार रविवार को दोपहर 12 बजे कराया गया।
बता दें कि मूल रूप से सोरम भटगांव जिला धमतरी के रहने वाले अमित कुमार विगत 4 साल से आमाडुला अपने ससुराल में रह रहे थे। इस दौरान उनकी तबीयत खराब हुई और उन्हें जांच के लिए गांव के अस्पताल ले जाया गया। जहां रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई। फिर उन्हें जिला कोविड-19 अस्पताल बालोद लाया गया। पर यहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उनके शव को मर्च्युरी में रखवाया गया था। जब मृतक की पत्नी ने गांव वालों को इसकी खबर दी कि उनके पति अब नहीं रहे, कोरोना के कारण मौत हुई है ये जानकर उनके शव को गांव जाने से मना कर दिया। सरपंच ने भी हाथ खड़े कर दिए। मृतक की पत्नी गर्भवती है साथ में एक बच्चा, उनकी सास भी थी। जो कल दिन भर अंतिम संस्कार को लेकर परेशान रहें और शव ना ले जा पाने की स्थिति में बालोद के मर्च्युरी के बाहर ही बैठकर मदद की गुहार लगाती रही। इसकी जानकारी मिलने के बाद बालोद जिला अस्पताल के ही एक स्टाफ सहित भाजपा नेता शरद ठाकुर व कुछ लोगों ने महिला की मदद की और उनके ठहरने का इंतजाम किया। अटल आवास कुंदरू पारा में समीर खान के घर उनके खाने की व्यवस्था की गई। पहले तो रैन बसेरा से संपर्क किया गया कि वहां उन्हें ठहराया जाए। पर कोरोना को देखते हुए वहां पर बाहर से आने वाले लोगों को अभी ठहरने की अनुमति नहीं दी गई थी। इससे फिर लोगों ने उन्हें निजी आवास में ठहराया और उनके परिवार के खाने-पीने का इंतजाम किया। फिर दूसरे दिन युवा कांग्रेस के नेता राजू तोप शर्मा ने नगरपालिका के अफसरों से बात करके नगर पालिका क्षेत्र के मुक्तिधाम में उनके पति के शव का अंतिम संस्कार करवाने की अनुमति मांगी। नगर पालिका प्रशासन ने अनुमति दे दी और प्रशासनिक सहयोग सहित बालोद वासियों के सहयोग से उनके पति के शव का अंतिम संस्कार हो पाया।
क्या इतनी भी मानवता नहीं
आमाडुला सरपंच सहित सोरम भटगांव के सरपंच व ग्रामीणों द्वारा गांव में कोरोना से मौत होने पर शव के अंतिम संस्कार से इनकार किया जाना मानवता को तार-तार करती ही है। तो यह जागरूकता के अभाव का एक बड़ा उदाहरण है। जबकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोरोना से किसी की मौत होती है तो उनका सामान्य अंतिम संस्कार नहीं होता। बल्कि कोरोना गाइडलाइंस के अनुसार स्वास्थ्य विभाग की टीम उनका अंतिम संस्कार कर दी है। पीपीई किट पहनकर कुछ परिजनों को मुक्तिधाम स्थल पर जाने की इजाजत रहती है। पर इतनी अज्ञानता है कि उक्त गांव के लोगों ने शव को गांव लाने से ही मना कर दिया। फिर क्या था दिन भर मृतक की पत्नी, उनकी मां परेशान रही।
बाहर से आने वाले लोगों के रुकने का हो इंतजाम
यह घटना किसी के साथ भी हो सकती है। लगातार कोरोना से बालोद जिले में मौते हो रही है। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली लोगों के लिए उस वक्त बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती है जब उनके परिवार में कोरोना से किसी की मौत होती है और रात गुजारने के लिए उनके पास ठिकाना तक नहीं होता। रैन बसेरा में अभी ठहरने की अनुमति नहीं दी जा रही है। तो वहां ऐसे में पीड़ित लोग कहां ठहरे , इसकी चिंता भी शासन-प्रशासन को होनी चाहिए और उनके लिए भी स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए। इस केस में तो जैसे तैसे लोगों ने मानवता का परिचय देते हुए पीड़ित परिवार की हर संभव मदद की और गांव ना सही बालोद शहर के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार हो गया। पर आने वाले दिनों में ऐसा और किसी के साथ भी हो सकता है। इसलिए शासन प्रशासन को इस पर सकारात्मक पहल करनी चाहिए यह लोगों की भी मांग है।