आज देव उठनी विशेष- क्षिर सागर का दृश्य दिखता है बालोद जिले के इस मंदिर में, कदम वृक्ष की भी होती है खास पूजा
सुप्रित शर्मा/ कमलेश वाधवानी, बालोद। बालोद व दुर्ग जिले की सीमा पर बसा एक गांव है ओटेबंद। जो वो बालोद जिले में गुंडरदेही ब्लॉक में आता है। इस गांव के मंदिरों की अपनी विशेष पहचान है। जहां के विष्णुधाम में फागुन माह में होली के पहले 11 दिवसीय यज्ञ व मेला का आयोजन होता है। इस जगह पर एक ऐसी मूर्तियों की श्रृंखला है, जो देव उठनी पर केंद्रित है। तो उसकी बनावट ही उसकी खास पहचान बताती है। बालोद जिले में यह एकलौता मंदिर है। जहां पर भगवान विष्णु शयन और लक्ष्मी के पैर दबाते क्षिर सागर में आराम की मुद्रा को दिखाया गया है। अब तक लोग तस्वीरों में ही इस तरह के दृश्य देखते रहते हैं या धार्मिक सीरियल में। लेकिन इस गांव के मंदिर में आप वृहद रूप से एक बड़े क्षेत्र पर बने इस मूर्तियों के श्रृंखला को देखकर आश्चर्य रह जाएंगे कि इसकी बनावट बहुत ही सुंदर कलाकृति के साथ की गई है। हर कोई जब इस मंदिर में जाता है तो इस क्षिर सागर रुपी मुद्रा को देखने के लिए आतुर होता है। और यहां पहुंच कर लोग भगवान विष्णु लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवताओं के दर्शन करते हैं।
आज देव उठनी पर भी मंदिर समिति द्वारा इस जगह पर पूजा पाठ किया जाता है। आसपास के गांव के लिए यह देवस्थल प्रमुख माना जाता है। शादी विवाह के समय भी लोग यहां पर पूजा करने के लिए आते हैं। देव उठनी के साथ ही इस जगह का महत्व और बढ़ जाता है। फरवरी में फागुन के दौरान जब यहां यज्ञ व मेला होता है तो दूसरे राज्यों से भी संत महात्मा आकर पूजा-पाठ और यज्ञ में शामिल होते हैं। तो वही लोग भी बड़ी संख्या में यहां जुटते हैं। बता दें कि इस मंदिर का निर्माण रायपुर के बंजारी धाम की तर्ज पर किया गया है।
होता है यहां 11 दिवसीय यज्ञ मेला
ओटेबंद स्थित श्री विष्णुधाम महायज्ञ मंदिर में फरवरी में मेला लगता है। यहां एक कदम के पेड़ की खास मान्यता भी है। श्रद्घालुओं का मनोकामना पूर्ण होने पर जोत जलाते हैं। यहां श्री विष्णु भगवान के मूर्ति के बाजू में एक कदम के पेड़ के विशेष पूजा-अर्चना होती है। मान्यता है कि इस पेड़ पर नारियल और लाल कपड़ा बांधने से हर मनोकामना पूर्ण होता है।
ऐसे हुई थी शुरुआत
श्री भू लक्ष्मी नारायण मंदिर ओटेबंद जिला बालोद यज्ञ प्रारंभ सन 1961 फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष द्वितीया से द्वादस तक महत्व अष्ट ग्रही योग से महायज्ञ होने से जन कल्याण के लिये बहुत शुभकारी है यह यज्ञ प्रति वर्ष 11 दिवसीय यज्ञ होता है।यह यज्ञ विश्व कल्याणर्थ के लिये है। पौराणिक विवरण एवं शिलान्यस 1994-95 मंदिर निर्माण हुआ। 20 फ़रवरी 1994 को आचार्य राधेश्याम द्विवेदी के करकमलों द्वारा सम्पन हुआ। श्रद्घालु कदम के पेड़ के फल और पत्ते तोड़ कर अपने घर ले जाते है मनोकामना पूरी होने पर श्रद्घालु मंदिर में जोत जलाते है। वर्षों पुराने इस मंदिर में प्रति वर्ष यज्ञ कराया जाता है। विगत 61 वर्षों से परंपरा कायम है। आस्था का मेला लगता है और लाखों श्रद्घालुओं जुटते है।