पुरुर में है मावली माता का अनूठा मंदिर, इस देवी के नाम से लगेगा गांव में 31 अक्टूबर को मेला, मानते हैं लोग इसे अंगारमोती की बड़ी बहन
बालोद। बालोद जिले के अंतिम छोर धमतरी से लगा एक गांव है मिर्रीटोला (पुरुर) जहां पर मावली माता का एक अनूठा मंदिर है। जो लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। इस गांव में माता मावली के नाम से ही मेला का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर को लोग अंगारमोती के देवी की बड़ी बहन मानते हैं। लोग जब भी अंगारमोती को दर्शन को जाते हैं यहां पर भी रुक कर दर्शन करते हैं। और अपनी मन्नतें मांगते हैं। पुरुर सहित आसपास के गांव के अलावा दूसरे जिले के लोगों की आस्था इस मंदिर से है। इस मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। सिर्फ 9 साल तक की बच्चियां को प्रवेश दिया जाता है। महिलाओं को बाहर से दर्शन की सुविधा के लिए अलग से और मूर्ति का निर्माण किया गया है। जहां पर महिलाएं मां को भेंट स्वरूप पूजन सामग्री चढ़ाते हैं। पुरुर का मावली माता मंडाई इस बार 31अक्टूबर को होगा।
हर वर्ष दीपावली गोवर्धन पूजा के बाद आने वाले प्रथम सोमवार को होने वाला यह क्षेत्र का प्रतिष्ठित आयोजन है। ग्राम पुरूर के आराध्य देवी मावली माता प्रांगण में लगने वाले मालवी माता मंडाई इस बार 31 अक्टूबर सोमवार को है। जिसकी तैयारी में ग्रामीण जुटे हैं। रात्रिकालीन मनोरंजन के लिए झन भुलौ मां बाप ल छत्तीसगढ़ी नाचा पार्टी ग्राम मोखा जिला धमतरी का कार्यक्रम रखा गया है। ग्रामीण कमलदेव साहू ने बताया मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और यह परंपरा विगत 200 सालों से चली आ रही हैं। जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं। यहां स्तिथ हैं। यहां आदि शक्ति माता मावली विराजमान हैं। माता मावली को माता अंगार मोती की बड़ी बहन के नाम से भी जाना जाता हैं। माता मावली के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है। माता के इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी मां के दर्शन करने आता है, उसकी मन्नत दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है। माता के दर्शन करने प्रदेश के कई हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं और सबसे अनोखी बात जो है वह यह कि माता मावली के मंदिर में सिर्फ चैत नवरात्र को ही ज्योत जलाई जाती हैं। क्वांर नवरात्र में सिर्फ पूजा पाठ की जाती हैं।
पुजारी को माता ने दिए थे स्वप्न में दर्शन-
माता मावली के मंदिर में दर्शन के लिए केवल पुरुष ही पहुंचते हैं। महिलाओं के लिए मंदिर में प्रवेश करना प्रतिबंधित है। ग्राम पटेल ने बताया कि मावली माता मंदिर करीबन 200 वर्षों पुराना है। हमारी कई पीढ़ी निकल गई और माता के प्रति आस्था और वर्षों से चली आ रही परंपरा आज भी जारी हैं। सिर्फ 9 से 10 वर्ष तक कि बच्ची माता के मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं। चूंकि ऐसी मान्यता हैं कि माता मावली कुवांरी हैं तो महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित हैं। ग्रामीणों ने बताया कि जिस स्थान में माता मावली का मंदिर है वहां वर्षों पहले घना जंगल हुआ करता था। ग्रामीणों की माने तो माता मावली जमीन से प्रकट हुई हैं। यहां के पुजारी (बैगा) ने बताया कि उन्हें एक बार सपने में भू-गर्भ से निकली माता मावली दिखाई दी और माता ने उस बैगा से कहा था कि वह अभी तक कुंवारी हैं, इसलिए मेरे दर्शन के लिए महिलाओं का यहां आना वर्जित रखा जाए। तब से इस मंदिर में सिर्फ पुरुष ही दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
सरपंच ने बताया कि मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है। मनोकामना पूरी होने पर कई श्रद्धालु चढ़ावा लेकर पहुंचते हैं। माता मावली के दर्शन के लिए सिर्फ छत्तीसगढ़ से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी काफी तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
महिलाओं की पूजा के लिए की गई है ये व्यवस्था
मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा है, लेकिन उनके लिए एक और व्यवस्था की गई है। पूजा-अर्चना के लिए परिसर में एक छोटे-से मंदिर का निर्माण कराया गया है, जहां महिलाएं माता के दर्शन कर मन्नतें मांगती हैं। यहां महिलाएं माता को नमक, मिर्ची, चावल, दाल, साड़ी, चुनरी आदि चढ़ावे के रूप में चढ़ाती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर के बाहर माता मावली की तस्वीर लगाई गई हैं, जिसे देख महिलाएं दर्शन कर लेती हैं।