बालोद की 22 साल की लाडो चली है संयम के मार्ग पर, दीक्षा लेने जाएगी उदयपुर, वरघोड़ा व अभिनदंन समारोह आज, देखिए कितनी कठिन होती है ये डगर?

संसार के मोह माया छोड़ संयम के रास्ते पर चलेगी यशस्वी लाडो, परिवार में ले चुके 8 लोग दीक्षा, अब उनके राह पर यह बेटी भी
आज निकलेगी वरघोड़ा

बालोद। बालोद की ये लाडो संसार का मोह छोड़ संयम के जीवन में कदम रखेगी….बालोद शहर के ढ़ेलडिया परिवार, जैन समाज में दीक्षा के क्षेत्र में जाना जाता है। इस परिवार से 9वी दीक्षा के रूप में अब एक और बेटी यशस्वी लाडो भी संयम पथ पर चलेगी। जो सांसारिक मोह का त्याग कर संयम का रास्ता चुन ली है। 3 अगस्त को उदयपुर राजस्थान में वह दीक्षा लेगी। इसके पहले बाकी के रस्मों रिवाजों को पूरा किया जा रहा है। ढेलड़िया परिवार से जुड़ी यशस्वी लाडो के इस दीक्षा के कदम से परिवार में खुशी भी है और उन्हें अब बेटी के रूप में ना देख पाने का गम भी है। दीक्षा के इस समारोह से पहले बालोद नगर में इस लाडली बेटी मुमुक्षु बहन यशस्वी लाडो का वरघोड़ा 19 जुलाई यानी मंगलवार को सुबह 9 बजे से प्रारंभ होगा। जो शहर के मुख्य मार्ग रामदेव चौक, मधु चौक, कचहरी चौक, गंजपारा होते हुए महेश्वरी भवन पहुंचेगा। जहां पर दोपहर 2 से अभिनंदन समारोह भी होगा ।बताया जाता है कि इस परिवार से अब तक 8 लोग दीक्षा ले चुके हैं। दीक्षा ले चुके लोगों से यशस्वी भी प्रभावित हुई और उन्होंने भी इसके लिए घरवालों को मनाया। घर वाले भी तैयार हुए और इस कदम में साथ दे रहे हैं। ज्ञात हो कि कई कठिन दौर से दीक्षा लेने वालों को पहले से ही गुजरना होता है। जिसमें कई परीक्षाओं में यशस्वी सफल भी हुई है। और अभी इस पड़ाव तक आ पहुंची है हालांकि दीक्षा ग्रहण करने के बाद भी जीवन की असल चुनौतियों से इनका सामना होता रहता है।

क्या है दीक्षा लेने के बाद के नियम

सूर्यास्त के बाद जैन साधु और साध्वी पानी की एक बूंद और अन्न का एक दाना भी नहीं खाते हैं। इसी तरह सूर्योदय होने के बाद भी यह लोग करीब 48 मिनट बाद पानी पीते हैं। वह अपने लिए कभी भोजन ही पकाते हैं , ना ही उनके लिए आश्रम में कोई भोजन बनाता है। यह सभी अपने लिए भिक्षा मांगकर भोजन का इंतजाम करते हैं। भिक्षा का भी अपना नियम है इस प्रथा को गोचरी कहा जाता है। जैन मुनियों को एक घर से बहुत सारा भोजन लेने की अनुमति नहीं होती है। वे स्वाद के लिए भोजन नहीं करते हैं बल्कि धर्म साधना के लिए करते हैं। जैन मुनि किसी भी प्रकार की गाड़ियां, यात्रा के साधन का प्रयोग नहीं करते हैं। वह मीलों का सफर वह पैदल ही पूरा कर लेते हैं। यात्रा भी बिना जूते चप्पल की होती है। इसके साथ ही किसी भी स्थान पर उन्हें अधिक दिनों तक रुकने की अनुमति नहीं होती। बारिश के चार माह मुनि और साध्वी कहीं यात्रा नहीं करते हैं ।इसके पीछे तर्क यह होता है कि इस दौरान कई बारीक जीव जंतु पैरों में आ सकते हैं इसे जीव हत्या का पाप लगता है। परिवार के लोगों ने बताया कि इस दीक्षा में सबसे कठिन और आम पड़ाव केश लुंचन होता है। यानी बिना किसी कैंची या रेजर के स्वयं अपने सिर के बालों को नोच कर अलग किया जाता है। यह प्रक्रिया सबसे पीड़ादायक होती है। कई बार तो सिर में जख्म हो जाते हैं। पर बाल निकालने का क्रम जारी रहता है। दीक्षा के बाद सभी मुनि और साध्वी साल में दो बार केश लुंचन करती है। पुरुष अपनी दाढ़ी मूछों के बाल भी इसी प्रकार त्यागते हैं।

उदयपुर जाएगी दीक्षा लेने

प्रदीप चोपड़ा ने बताया बालोद के प्रतिष्ठित व धर्मवीर परिवार ढेलडिया परिवार की लाडली यशस्वी जैन भगवती दीक्षा महोत्सव आगामी 3 अगस्त को आचार्यभगवन श्रीरामलालजी मसा. व उपाध्याय प्रवर श्रीराजेशमुनिजी मसा. के सानिध्य में उदयपुर राजस्थान में संपन्न होगी।

आज के आयोजन के ये होंगे अतिथि

इधर बालोद में वरघोड़ा के बाद होने वाले अभिनंदन समारोह में मुख्य अतिथि साधुमार्गी जैन संघ राष्ट्रीय अध्यक्ष गौतमचंदरांका होंगे। अध्यक्षता नीलमचंद सांखला छत्तीसगढ़ मानव अधिकार आयोग सदस्य करेंगे। विशिष्ट अतिथि संजारी विधायक संगीता सिन्हा, गौतमचंद पारख राजनंदगांव, निश्चल कांकरिया कोलकाता , अनिल पारख रायपुर , नवीन देशलहरा दुर्ग , गुलाबचंद चोपड़ा जोधपुर , सुभाष कोटडिया शहादा, मोहनलाल छाजेड़ दल्ली, अतुल पगारिया जावरा, दीपक मोगरा उदयपुर, प्रकाश चंद गोलछा रायपुर उपस्थित रहेंगे।

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