प्री प्राइमरी शिक्षा बेहाल- 2 सालों से आंगनबाड़ी केंद्रों में नहीं है कार्यकर्ता और सहायिका,कहीं खाना बनाने में छुट रहे पसीने तो कहीं पढाई ही ठप

बालोद जिले में 28 केंद्रों में कार्यकर्ता, 55 में सहायिका नहीं
बालोद|-राज्य शासन व महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में लगभग 2 सालों से कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के पद खाली हैं। बालोद जिले में 28 आंगनबाड़ी केंद्रों में कार्यकर्ता, वही 55 केंद्रों में सहायिका नहीं है यही वजह है कि इन केंद्रों में नौनिहालों का बचपन केवल खाने और खेलने में ही बीत रहा है। जहां कार्यकर्ता नहीं है वहां की सहायिका को खाना बनाने के सिवा पढ़ाने के लिए समय नहीं है। वहीं जहां कार्यकर्ता हैं वहां सहायिका नहीं होने के कारण उनका अधिकतर समय खाना बनाने और बच्चों की देखभाल में ही बीत रहा है। इनकी भर्ती को लेकर शासन-प्रशासन संबंधित विभाग द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिसके चलते इन केंद्रों का संचालन पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। बताया जाता है कि शासन से भर्ती प्रक्रिया अटकी हुई है। भर्ती प्रक्रिया बीच में लटकने के कारण संबंधित लोगों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। देखा जाए तो आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन मात्र औपचारिक होकर रह गया है। सरकार जहां दावा करती है कि हम बच्चों का सर्वांगीण विकास करेंगे। बचपन में उन्हें जो अनौपचारिक शिक्षा की जरूरत है वह दिलाएंगे। लेकिन जिले के दो दर्जन से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्रों में ऐसा माहौल नजर नहीं आ रहा है। जब हम जिले के कुछ आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थिति जानने के लिए पहुंचे तो यह परिस्थितियां सामने आई।

केस 1- बोरी में 2 साल से रिक्त है कार्यकर्ता का पद

लाटाबोड़ के पास स्थित ग्राम बोरी में 2 साल से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का पद रिक्त है। ग्रामीण दुष्यंत साहू ने बताया कि 2020 में 23 जनवरी को बोरी के आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 2 में पदस्थ रहे कार्यकर्ता सुशीला साहू की आकस्मिक मौत हो गई थी। उनके जाने के बाद 2 साल से यहां पर कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नियुक्ति नहीं हुई है। जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। ग्रामीण रूप राम, सोहन ने बताया कि बिन कार्यकर्ता यहां पढ़ाई नहीं हो पाती है। छोटे बच्चे बचपन में आंगनबाड़ी केंद्र जाने को उत्सुक रहते हैं वह सोचते हैं कि वहां जाने के बाद कुछ सीखेंगे। लेकिन कार्यकर्ता बिना केंद्र अधूरा है। सहायिका से वहां गर्म भोजन आदि तो मिल जाता है लेकिन जो प्रारंभिक शिक्षा मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। सिर्फ सहायिका भुनेश्वरी साहू यहां काम कर रहे हैं।

केस 2- खाना बनाने में छूट रहे कार्यकर्ताओं के पसीने

इसी तरह ग्राम दरबारी नवागांव और मनौद की स्थिति का जब हम जायजा लेने पहुंचे तो वहां सहायिका के पद विगत डेढ़ साल से खाली हैं। बताया जाता है कि भर्ती प्रक्रिया हो रही थी लेकिन बीच में ही नियुक्ति रोक दी गई है। संचालनालय से ही प्रक्रिया लटके होने की बात कार्यकर्ता कह रहे थे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनका बच्चों को पढ़ाना तो दूर की बात रोज यहां भोजन पकाने में पसीने छूटते हैं। क्योंकि यह काम सहायिका का होता है हमें बच्चों को शिक्षित करना रहता है लेकिन बच्चों को सहायिका के ना होने की वजह से उन्हें गर्म भोजन आदि लगाकर बना कर देना पड़ता है। ऐसे उनका अधिकतर समय इसी में चला जाता है। शासन-प्रशासन नियुक्ति को लेकर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा है।

सरकार कहती है प्री प्राइमरी शिक्षा को करेंगे मजबूत, पर हाल तो बुरा है जनाब

एक तरफ जहां कांग्रेस सरकार दावा करती है कि हम प्री प्राइमरी शिक्षा को मजबूत करेंगे यानी स्कूल पहुंचने से पहले जो शिक्षा मिलनी चाहिए वह बच्चों को अच्छी तरह गुणवत्तापूर्ण मिले इसका ध्यान रखा जाएगा। इसके लिए नई-नई योजनाएं लाई जाती है। यूनिसेफ संस्था के माध्यम से ही हाल ही में नवांकुर योजना शुरू की गई तो वही इसके पूर्व आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र का कॉन्सेप्ट आया था। लेकिन धरातल पर उनका अपेक्षित लाभ नजर नहीं आ रहा है। वजह यही है स्टाफ की कमी और योजना की निगरानी संबंधित अधिकारियों द्वारा सही तरीके से नहीं किया जाना।

क्या कहते हैं अधिकारी

जिले सहित पूरे छत्तीसगढ़ में रिक्त कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की नियुक्ति प्रक्रिया रोके जाने को लेकर जिले के महिला एवं बाल विकास अधिकारी अजय शर्मा का कहना है कि शासन से ही नियुक्ति रुकी हुई थी। नियुक्ति को आगे बढ़ाने का आदेश आ चुका है। जिस पर बालोद जिले में भी भर्ती प्रक्रिया चल रही है। पूरे रिक्त पदों पर भर्ती के लिए फिलहाल प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। जैसे-जैसे शासन से निर्देश प्राप्त होते हैं उन पदों को भरा जाएगा। यह बात सही है कहीं कार्यकर्ता व सहायिका के पद रिक्त हैं। जहां के लिए स्वीकृति प्राप्त हो चुके हैं वहां नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गई है।

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