प्रेरणा साहित्य समिति बालोद की मासिक कवि गोष्ठी एवं फागुन मिलन समारोह का हुआ आयोजन

बालोद। शंकर नगर बालोद में गायत्री पूर्णानन्द साहू आवास में प्रेरणा साहित्य समिति बालोद की मासिक कवि गोष्ठी एवं फागुन मिलन समारोह का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक आकाश रहे। अध्यक्षता साहित्यकार एवं कवि टिकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि की आसंदी को अरुण कुमार साहू प्राचार्य आत्मानंद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बालोद, प्रेरणा साहित्य समिति अध्यक्ष जयकांत पटेल संरक्षक पुष्कर राज ने सुशोभित किया। कार्यक्रम का संचालन असल गंधर्व ने किया अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती की पूजा अर्चना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । होली मिलन पर आयोजित उक्त कार्यक्रम में प्रेरणा साहित्य समिति के अन्य सदस्य एवं पदाधिकारी उपस्थित रहे।समस्त साहित्यकारों का स्वागत करते हुए प्रेरणा साहित्य समिति के अध्यक्ष जयकान्त पटेल ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया उन्होंने विचार गोष्ठी के क्रम में साहित्यकारों को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य एक बहता हुआ जल की तरह होता है जिस तरह जल रुक जाता है तो वह प्रदूषित हो जाता है उसमें कीड़े पड़ जाते हैं अन्य प्राणियों का जमावड़ा हो जाता है इसी तरह साहित्य को अनवरत बहते रहना की जरूरत होती है प्रवाहमयी साहित्य समाज को सही दिशा दे सकता है इसके लिए साहित्यकारों को निरंतर साहित्य सृजन करते रहने की आवश्यकता है उन्होंने भगवान शंकर देवाधिदेव महादेव को समर्पित छत्तीसगढ़ी रचना के साथ माहौल को भक्तिमय बना दिया । कार्यक्रम के क्रम में सुप्रसिद्ध गीतकार व्याख्याता पुसन कुमार साहू ने छत्तीसगढ़ी गीत के माध्यम से सुन्दर प्रस्तुति दी । धर्मेंद्र श्रवण ने कहा साहित्य से हमें व्यक्तित्व निर्माण का सुअवसर मिलता है उन्होंने कहा ऐसा साहित्य सृजन करें की समाज में जागृति हो उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सुगठित समाज निर्माण का संदेश दिया प्रेरणा साहित्य समिति के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह राज ने रंग एवं गुलाल के त्यौहार पर हास्य व्यंग्य से सजी गुदगुदी पैदा करती कविता का पाठ करते कहा – परंपरा के पिचकारी में, माया के रंग लगान,
रंग में माते बुढ़वा बुढवी, लइका अउ सियान। कार्यक्रम के आयोजक श्रीमती गायत्री साहू ने गीत के माध्यम से सुमधुर संदेश देते कहा-
होली खेलो रे, होली खेलो,
भूल कर पिछली सारी बात, मिटाकर ऊंची नीची जात।
होली खेलो …
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार टिकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला ने अपने विचार व्यक्त करते कहा- वरिष्ठ साहित्यकारों के विचारों से नवोदित रचनाकारों की रचनाधर्मिता सुदृढ़ होती है।
उन्होंने अपनी कविता में प्रेमी जोड़े की विरह व्यथा व्यक्त किया –
जोड़ी तोर सुरता आथे,
रही-रही के।
फागुन के गेये राजा, फेर फागुन आगे।
चैन मोर लेये राजा, दूनों नैन पथरागे।
रात भर सपना सताथै, रही-रही के।
जोड़ी तोर सुरता आथै, रही-रही के।

कार्यक्रम के मुख्यअतिथि डॉ.अशोक आकाश ने विचार व्यक्त करते कहा- हमारी सोच जब तक स्थायी नहीं होगी हमें सफलता नहीं मिल सकती, हम एक रास्ते में कदम बढ़ाते ही, हमारी सोच बदल जाती है और दूसरे रास्ते पर चल पड़ते हैं, इससे हम मंजिल तक पहुँचने से पहले ही भटक जाते हैं। हमें जहॉं जाना है दृढ़ता से कदम बढ़ाना होगा तभी हम निश्चित मंजिल तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने रंग और उमंग के त्यौहार की रीति नीति परम्परा बनाये रखने का निवेदन करते काव्यमय रंग चित्र प्रस्तुत किया-

सर रर रर रर, फगुआ गावथे फाग,
छर रर रर रर, चले पिचकारी हे।
गली गली गरेरा कस, उड़े रंग रंग गुलाल,
होलियारा होली खेले, टूरी देवे गारी हे ।

ठेठरी खरमी चौसेला, महमाथे गलती खोर,
आनी बानी सेल्फी में माते मोटियारी हे।

ऑंखी दिखे जुगुर जुगुर, डोकरी देखे मुटुर मुटुर,
खावत रथे मुसुर मुसुर, भजिया सुहॉंरी हे।

कार्यक्रम में गायत्री साहू को अतिथियों द्वारा शिवांगी उपनाम विभूषण से विभूषित किया गया।संचालन कर रहे कवि एस.एल.गंधर्व ने चुटीले हास्य व्यंग्य से मंच को ऊँचाई प्रदान किया। पूर्णानंद साहू ने सुमधुर गीत के साथ आभार व्यक्त करते सभा समापन की घोषणा की।

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