प्रतिशोध और प्रतिक्रिया भी है एक हिंसा का रूप, इससे बचे ,तभी जीवन के चक्र से निकल पाएंगे

बालोद। सहजानंदी चातुर्मास में प्रवचन श्रृंखला के तहत शुक्रवार को महावीर भवन में विराजित परम पूज्य श्री ऋषभ सागर जी ने लोगों को प्रतिक्रिया से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि संयोग से हमें मानव भव मिला और आर्य क्षेत्र मिला है ।साथ ही हमें अरिहंत का शासन, परंपरा और ज्ञान मिल गया। हमारे जीवन को सुधारने, संभालने, संवारने के लिए सब कुछ मिल गया। लेकिन फिर भी हम देख रहे हैं कि जितना अच्छा हमारा जीवन होना चाहिए उतना अच्छा महसूस नहीं कर पाए ।तो उसका कारण ज्ञानी बताते हैं पाप और वह पाप है अज्ञान। कुछ को तो हम पाप मान लेते हैं और जिसे हृदय पाप मान लेते हैं उससे दूर होना आसान हो जाता है। लेकिन जब हमको गलत, गलत नहीं लगता है, पाप , पाप नहीं लगता है तो उसका त्याग करना कठिन हो जाता है। भगवान ने बताया कि हमारे दुख के कारण हमारे कर्म बंधन है और उसका कारण हिंसा है। इसलिए जीव हिंसा से बचे । हिंसा का अर्थ हम ज्यादातर यह निकाल लेते हैं कि किसी जीव को मारना हिंसा है। लेकिन बहुत दुर्लभ है कि हम जानबूझकर किसी जीव को मारते हैं। क्योंकि जिन शासन में जानबूझकर ऐसा नहीं करते। भगवान ने हिंसा को सूक्ष्म तत्व बताया है। प्रतिशोध भी हिंसा है। हम मौका ढूंढते रहते हैं कि हम किसी का अहित करें बदला लें,जिन्हें हम पसंद नहीं करते हैं हमारे भीतर उनके अहित करने की भावना रह जाती है और हमारे भीतर प्रतिशोध की भावन रह जाती है। वहीं भगवान बोलते हैं कि एक और हिंसा है जो सबसे बड़ी हिंसा है। शायद उसे ज्ञानियों ने नाम दिया है प्रतिक्रिया। कोई भी घटना घटती है तो उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया कैसी होती है। भले ही हो सकता है कि हमारे मन में किसी के प्रति प्रतिशोध नहीं है लेकिन प्रतिक्रिया कैसी है यह हमें देखना होगा। हम कइयों बार प्रतिक्रिया कर बैठते हैं। भगवान कहते हैं की प्रतिक्रिया भी एक हिंसा है जो भी घटना घटी उसकी प्रतिक्रिया भगवान ने नहीं की। क्योंकि अगर प्रतिक्रिया करेंगे तो हिंसा होती है। प्रतिक्रियाओं से बच सकेंगे तभी हम हिंसा से बच सकेंगे । हमें प्रतिशोध तो गलत लगता है लेकिन प्रतिक्रिया गलत नहीं लगती है। लेकिन प्रतिक्रिया करने वाले अपनी उर्जा गलत चीजों में गंवा देता है। हम देखतें हैं की हमारा रिमोट कंट्रोल हमारे हाथ में नहीं है। हम लोगों की दूसरों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं। हमें लोगों के द्वारा हंसाया रुलाया जा सकता है। जैसे कठपुतली का सूत्रधार कोई और होता है। वैसे ही आज इंसान हो गए हैं। हमसे चाहे जो करवाए जा सकता हैं। हमसे बड़े से बड़ा क्रोध या दान करवाया जा सकता है। क्योंकि हम अपने नियंत्रण में नहीं है। हम प्रतिक्रिया करने के इतने आदी हो गए हैं कि इसके बिना रह नहीं पाते हैं। दो लोग भी बात करें तो आप बैठकर सुन नहीं सकते। हम कुछ ना कुछ प्रतिक्रिया देते ही हैं ।चाहे उससे बात बिगड़े या चाहे बने ।जैसे हाय कोई घटना घटे हमारे भीतर मन में प्रतिक्रिया करने के लिए हमविलालायित हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी उत्कृष्ट जीवन नहीं जी पाता है छोटी-छोटी बातों में भी हम तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं। ऐसा जीवन नर्क अशांति वाला जीवन है। इसलिए आपको साधना करनी है तो प्रतिक्रिया से बचना होगा। प्रतिक्रिया हमारी रचनात्मक शक्ति को विध्वंसात्मक शक्ति में बदल देती है। हमारी दिशा मोड़ देती है। हम स्वाध्याय करते रहते हैं लेकिन प्रतिक्रिया स्वरूप हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। अपने हाथ में होना चाहिए मुझे कैसा व्यवहार करना है। अगर आगे वाले के हाथ में है तो यह बहुत मुश्किल हो जाएगा। छोटी घटनाओं पर जब हम तीव्र प्रतिक्रिया कर देते हैं तो सोचिए कि हमारे जीवन में जब बड़ी घटना घटती है तो हम क्या-क्या नहीं कर लेते हैं। इसलिए ऐसी चीजों से बचे ।जब तक आप अपनी ओर नहीं देखेंगे मुझे अपनी भूमिका में क्या करनी चाहिए ,इस पर विचार करना चाहिए। प्रतिक्रिया रहित जीवन जिए जैसे साधु जीते हैं। अहंकारी व्यक्ति बिना प्रतिक्रिया के नहीं रह सकता। क्योंकि अहंकार जितना ज्यादा होता है उसे उतनी ही ज्यादा प्रतिक्रिया करवाई जा सकती है ।अपने आप को सुधारना पहचानना है तो प्रतिक्रिया देने से बचना है। यह सबसे बड़ा पाप है ।यह पाप हम दिन भर में कितनी बार कर रहे हैं यह देखें। जिसके बारे में कुछ नहीं पता उसके बारे में भी हम प्रतिक्रिया करते रहते हैं। ऐसा ही जीवन रहा तो सच में आज हम जितने बुरे हो रहे हैं अंत में और ज्यादा बुरे होंगे। प्रतिक्रिया करने से हमारे पुण्य संस्कार नष्ट हो जाते हैं और अगले जन्म के लिए भी हम इसे साथ ले जाते हैं। और हम इस संसार के चक्र से बाहर नहीं निकल सकते। अगर हमें प्रतिक्रिया से बचना है तो हमें अहंकार से भी बचना है। प्रतिक्रिया से बचना है तो अपने हित की सोचना पड़ेगा। अहंकार व्यक्ति से प्रतिक्रिया करवा देता है इसलिए हमें अहंकार पर काम करना होगा। अहंकार को अपनी उपस्थिति दर्ज करने में मजा आता है। हम जीवन में दिन में कितने बार प्रतिक्रिया करते हैं उसका आकलन करें कि आपसे किस तरह की कितनी प्रतिक्रिया हो रही है। यह देखें तो पहले फिर उसके बाद ही सुधारने के लिए राजी हो पाएंगे। संत और गृहस्थ में यही अंतर है कि हमें प्रतिक्रिया नहीं करनी है। उस पर ध्यान दें। जो चीज आदतें हो जाती है उससे फिर निकल नहीं पाते। कई बार हम बड़ी-बड़ी बेवकूफियां कर देते हैं। वह भी बिना सोचे समझे और हम उस बारे में सोच भी नहीं पाते। कई लोगों की ऐसी प्रतिक्रिया होती है वह भी अजीबोगरीब प्रतिक्रिया करते हैं । कई लोग तो सपने में भी ऐसी प्रतिक्रिया करते हैं। आपने जो प्रतिक्रिया की, आपने किया या आपसे करवाई गई यह सोचिए। प्रतिक्रिया वाला जिसका जीवन है उससे कुछ भी करवाया जा सकता है। आपको भड़काकर बुरा बनाया जा सकता है। जैसे ही हम कोई निर्णय पर आते हैं तो हम प्रतिक्रिया करने लग जाते हैं। जैसे आपकी आपके अंदर सुख दुख चलते रहते हैं या अच्छा है या बुरा है इसलिए जल्दी निर्णय न करें ।भविष्य के गर्त में क्या है इस पर आकलन करें। प्रतिक्रिया मैं क्यों कर रहा हूं यह मेरा पागलपन तो नहीं बन गया है, बिना प्रतिक्रिया के मैं रह पा रहा हूं या नहीं? इस सब चीजों पर ध्यान दें।यदि हमने थोड़ा सा भी सदप्रयास इस दिशा में अंतर्मन से कर लिया तो मानिये आपने जीवन की सफलता को सुनिश्चित कर लिया है।