November 22, 2024

गांधी जयंती विशेष: गंगरेल डैम के डुबान में है गांधी जी और भारत माता का मंदिर, बालोद धमतरी और कांकेर जिले के देशभक्त और गांधी प्रेमी जुटते हैं यहां,,,,,देखिए ये खबर

छटियारा गांव में जंगलों के बीच श्रमदान से बना है छत्तीसगढ़ का एक मात्र ऐसा मंदिर जहां सफेद वस्त्र धारण कर ही करते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पूजा

दीपक यादव,बालोद। छटियारा गांव में जंगलों के बीच श्रमदान से बना है छत्तीसगढ़ का एक मात्र ऐसा मंदिर जहां सफेद वस्त्र धारण कर ही करते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पूजा की जाती है ।छत्तीसगढ़ के गंगरेल डैम के डुबान क्षेत्र में बसा है ग्राम छटीयारा (कोड़ेगांव)। इस गांव की विशेषता यह है, कि इस गांव में प्रदेश का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की पूजा होती है। यहां उनकी मूर्ति भी स्थापित है, इस गांव तिरंगा लहरा कर राष्ट्रगान भी गाया जाता है। यहां धरती माता की आराधना भी की जाती है। देश भक्ति से ओतप्रोत एक आश्रम भी है। जहां धमतरी, कांकेर व बालोद जिले के सैकड़ों अनुयायी मन की शांति के लिए यहां आते हैं। इस मंदिर से जुड़े अनुयायियों को सादगी का जीवन अपनाना होता है, वे शराब, मांस भक्षण का सेवन नहीं कर सकते। मंदिर के सदस्य गांधी जी के जैसे ही बुनकर के द्वारा तैयार किए गए कपड़ों को ही पहनते हैं। मंदिर के सदस्य बताते हैं कि यह मंदिर कांकेर और धमतरी जिले के बॉर्डर में महानदी के तट पर जंगलों के बीच स्थित है। जहां तक जाने सदस्यों ने श्रमदान से रास्ता तैयार किया है। यहां चारामा, नगरी, बेल्हर, धमतरी, गुरुर, बालोद व कई गांव से गांधी जी के जन्मदिवस, 15 अगस्त और 26 जनवरी को लोग पूजा करने पहुंचते हैं।

एक किसान ने आजादी के पूर्व गांधी जी को मंच से सुना और उनके मुरीद हो गए

गुरुर के शिक्षक जितेंद्र शर्मा बताते हैं कि वे इस मंदिर में जाते रहते हैं। उनके पिता स्व सालिक राम शर्मा उक्त मन्दिर समिति के प्रमुख सदस्य में से एक थे, और वहां के संवर्धन में उनकी बड़ी भूमिका थी। 1920 में जब महात्मा गांधी जी कंडेल आए थे उस समय छटियारा के एक किसान दुखुराम ठाकुर उनके भाषण से प्रभावित होकर वे गांधी जी के अनुयायी बन गए। एक छोटी सी कुटिया में गांधी जी की एक फोटो रखा उसकी पूजा करने लगे और लोगों में आजादी की अलख जगाते थे। उनके निधन के बाद इस कार्य को धन्नू बाबा ने आगे बढ़ाया। लोग यहां श्रद्धा से आते हैं।

यहां पर धरती माता की होती है आरती, तिरंगा फहरा कर लोग गाते हैं राष्ट्रगान

मंदिर समिति के लोग बताते हैं कि मंदिर बहुत पुराना है। जब देश आजाद नहीं हुआ था। तब दुखुराम बाबा जी 30 किमी पैदल चलकर धमतरी आते थे। यहां रात भर रूककर जब सुबह अखबार आता था। तब उसे लेकर वह गांव-गांव गांधी जी की बातों को सुना कर लोगों को जागरूक करते थे। यहां पर धरती माता की आरती होती है और तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान गाते हैं।

शराब मांस, नशे पर प्रतिबंध, सादगी से करते हैं पूजा

दुलार साहू, शिवराम ने बताया मंदिर परिसर में शराबखोरी, मांस-मटन या किसी भी प्रकार का नशा प्रतिबंधित है। जिस तरह से महात्मा गांधी सादे वस्त्र में रहते हैं, वैसे ही वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है। बुनकर भी खादी के कपड़े मंदिर में चढ़ाते हैं। मंदिर को देखने व यहां की परंपरा को समझने दूर-दूर से लोग आते हैं।

प्राकृतिक वातावरण भी आकर्षण का केंद्र

क्षेत्रीय ग्रामीण रोहित यादव ने बताया गंगरेल के डुबान में स्थापित यह मंदिर प्राकृतिक वातावरण रमणीय है। इस जगह की खूबसूरती को देखने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। पहाड़ की ऊंचाई से गंगरेल जलाशय का पानी और हरियाली के साथ चलती ठंडी हवा लोगों को आकर्षित करती है।

गुरूदेव दुखू ठाकुर महात्मा गांधी के परमभक्त थे

गांधी जी के इस मंदिर तक बालोद जिले के नेशनल हाइवे पर कांकेर जिले के चारामा से होकर जाना पड़ता है.यहां सटियारा में भारत माता सेवा समिति द्वारा गांधी मंदिर का संचालन किया जाता है.बताया जाता है कि समिति से जुडे़ लोगों के गुरूदेव दुखू ठाकुर महात्मा गांधी के परमभक्त थे और वह गांधी विचारों को आगे बढ़ाने गंगरेल के डूबान में गांधी मंदिर की स्थापना की थी.

दुख-संताप भी होते हैं दूर

उन्होंने अपने साथ विभिन्न स्थानों के कई परिवारों को भी जोड़ा और उनसे गांधीजी के विचारों को आगे बढ़ाने और उनके साथ काम करने का आह्वान किया. गंगरेल बांध के निर्माण के कारण मंदिर जलमग्न हो गया था, जिसे बाद में नदी के तट पर फिर से बनाया गया था.तब से लेकर आज तक गुरुदेव और गांधीजी की पूजा होती आ रही है. इसके अलावा यहां भारत माता की भी पूजा की जाती है. हालांकि उनकी पूजा का तरीका अन्य जगहों से अलग है, लेकिन मंदिर समिति के लोग चावल के आटे का इस्तेमाल करते हैं.उनका मानना है कि यहां पूजा करने से दुख-संताप दूर होते हैं. इस गांधी मंदिर में लगभग सभी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं.नवरात्रि में यहां कामना की ज्योत भी जलाई जाती है, राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस झंडा फहराकर मनाया जाता है.

मूलभूत सुविधाओं का है अभाव ,प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत

मंदिर समिति के एक सदस्य ने कहा कि गांधी मंदिर के नाम से जाने वाली इस जगह में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.यहां नाव या फिर पंगडंडी रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है.पहाड़ी और घने जंगल होने की वजह से लोगों को जंगली जानवरों का खतरा भी रहता है.यदि रास्ता बन जाता है कि तो आने-जाने वाले लोगों को आसानी हो सकती है.वहीं यह क्षेत्र पर्यटन में भी जुड़ सकता है. शासन प्रशासन को इसके विकास को लेकर ध्यान देने की जरूरत है।

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