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“खिलौने वाले गुरूजी” के रूप में ख्याति प्राप्त नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय बने हमारे नायक, आप भी पढ़िए सफलता की प्रेरणादायक कहानी, पढ़ई तुंहर दुआर के ब्लॉग लेखक श्रवण कुमार यादव की कलम से

जांजगीर चाम्पा/सक्ति। छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम अंतर्गत cgschoolin पोर्टल के “हमारे नायक” कालम में प्रति माह अलग-अलग थीम आधारित ब्लॉग अपलोड किए जा रहे है | इसी क्रम में इस बार “हमारे नायक” (शिक्षक) के लिए छत्तीसगढ़ के परंपरागत खिलौनों एवं खिलौने से विज्ञान सीखने-सिखाने सहित नवाचारी खिलौनों का संग्रह कर बच्चों को शिक्षा देने वाले शिक्षकों का हमारे नायकों हेतु चयन किया गया है| जैसा कि हम सभी यह अच्छी तरह जानते है कि छोटे बच्चों को खिलौने से बहुत प्यार होता है | स्कूलों में भी बच्चों के लिए खिलौने उपलब्ध कराते हुए खेल-खेल में इन खिलौनों के साथ बच्चों को सीखने-सिखाने का अवसर प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी विकल्प प्रस्तुत किया गया है | इसी प्रस्ताव अनुसार आगामी दिनों में संकुल से लेकर राज्य स्तर तक चरणबद्ध कार्यक्रम भी निर्धारित किए जा रहे है | आज के हमारे नायक (शिक्षक) के रूप में चयनित नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय, शासकीय आश्रम शाला अमलडीहा, संकुल रगजा, विकासखंड सक्ति, जिला जांजगीर चाम्पा भी ऐसे ही खिलौने निर्माण कर बच्चों को सीखने-सिखाने जोड़ने का एक सफल व बेहतरीन प्रयास कर रहे है|

“खिलौने वाले गुरूजी” बनने तक का सफर
पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम के राज्य स्तरीय ब्लॉक लेखक श्रवण कुमार यादव, सहायक शिक्षक, शासकीय प्राथमिक शाला कोसा, जिला बालोद से चर्चा करते हुए नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय ने जानकारी दिया कि वह 1996 में डाइट पेंड्रा के प्रशिक्षण “सीखना-सीखना-कार्यक्रम” से प्रशिक्षित है | उस समय प्रशिक्षण में भी उनके द्वारा छोटा-छोटा खिलौना बनाया जाता था | इसके बाद 2009 के “लो कॉस्ट नो कॉस्ट” प्रशिक्षण जांजगीर, 2012 के “लो कॉस्ट नो कॉस्ट” प्रशिक्षण राष्ट्रीय विज्ञान कार्यशाला नागपुर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार द्वारा आयोजित कार्यशाला से विशेष प्रेरणा मिली | जिसके बाद मैंने कार्य करना शुरू किया|

उन्होंने आगे बताया कि कुछ विज्ञान के समान हमें बचपन में खेले गए खिलौने से मिलता जुलता था | उसे ही नवीन रूप में उनके द्वारा परिणित भी किया गया है | उनके द्वारा अनेकों खिलौनों का निर्माण कर बच्चों के सीखने-सिखाने में उपयोग किया जा रहा है | कुछ प्रमुख खिलौना का उल्लेख करना आवश्यक है, जिनमें संतुलित तितली, स्व चलित फब्बारा, मैजिक फब्बारा, दाब-हवा से चलने वाली हैंड पंप, न्यूटन डिस्क पांच प्रकार का, भौरा, दर्पण का खेल, क्लैडोस्कोप, हैंड मेड एक्यूरियम, जादुई सांप, गुलदस्ता का रंग बदलना, हवा से चलने वाली कार, हवा से चलने वाली नाव, भाप से चलने वाली मोटर बोर्ड, भूकम्प सूचक यंत्र, यांत्रिकी ऊर्जा से बिजली पैदा करना, सोलर पंखा, टूथ पेस्ट से कार बनाना, साक्षरता अभियान के मोनो को चलते हुये प्रदर्शित करना, गुब्बारा का रंग बदलना, दर्पण में सीधा चित्र दिखाना, अंको को आँख में पट्टी बांध कर बताना, पेन से हैंड पंप, कोरा कॉपी को तुरंत रंगीन कॉपी बनाना, तास के पत्तो से पृथ्वी की आंतरिक संरचना पा प्रदर्शन, माचिस से कलाम जी निकलना, डिस्पोजल से फोन बनाना, रंगीन छाया बनाना, बोतल से पन्डब्बी का मॉडल, बाल्टी बोतल से गोताखोर बनाना, शिरीन से हैडोलिक बनाना, जैक मशीन बनाना, पानी का रंग, जल तरंग, हवा में तैरने वाली पत्थर, वाटर ऑफ बॉटल मैजिक, वाटर ऑफ बॉटल मैजिक, बाइस्कोप, प्रोजेक्टर, हवा में लटकने वाली बाल, कागज का खिलता फूल, ज्वालामुखी, बोतल में नाचती सिक्का, त्वचीय उत्तक, पृथ्वी की आंतरिक संरचना, यो यो खिलौना, फूक मार कर भारी वस्तुये को उठाना, कागज की कटोरी में चाय बनाना, हिंदी विलोम शब्द निकलना, उपसर्ग एवं प्रत्त्य के लिए खिलौना, गणित में चतुर्भुज के चारो कोणों, कागज से टोपी, कार्टून पंखा आदि प्रमुख है|

परंपरागत खिलौनों से मिलने वाले लाभ
नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय का मानना है कि इन खिलौनों के बनाने से बच्चो में वैज्ञानिक सोच के साथ-साथ कल्पनाशीलता बढ़ती है | जब दर्शक प्रश्न पूछते है, तो छात्र स्वयं उत्तर देने के लिये मजबूर हो जाते है | उत्तर नही जानने पर पुनः मेरे पास आकर अवधारणा समझते है | दबाव बनाने की जरूरत नही पड़ती | बच्चे उत्तर रटते नही सुन कर देखकर समझ जाते है|

खिलौने निर्माण हेतु बच्चों को प्रोत्साहन व सहयोग, बच्चे कर रहे स्वयं खिलौने का निर्माण
बच्चों को विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों के साथ साथ खिलौनों से सिखाने वाले शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय द्वारा बच्चों को भी खिलौने के निर्माण हेतु प्रोत्साहित करने के साथ-साथ आवश्यकतानुसार सामग्री क्रय इत्यादि में सहयोग भी दिया जाता है | अब बच्चे भी अपनी कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हुए स्वयं खिलौने निर्माण कर रहे है|

आनलाइन पढ़ाई में TLM का उपयोग, प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला द्वारा लिखित “महामारी लेकिन पढ़ना लिखना जारी” में मिला स्थान


राज्यपाल अवार्डी उत्कृष्ट शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय द्वारा कोविड-19 की वजह से हुए अनिश्चितकालीन लॉकडाउन के दौरान भी अपनी आश्रम शाला में बहुत सी विज्ञान की TLM बनाना जारी रखा गया | उनके द्वारा बहुत पहले से ही विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से सिखाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे है | लॉकडाउन के दौरान बच्चों में विज्ञान के प्रति रूचि विकसित करने के उद्देश्य से उनके द्वारा अपने ऑनलाइन क्लॉस में बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी TLM बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है | उनके इन प्रयासों को छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला द्वारा लिखित “महामारी लेकिन पढ़ना लिखना जारी” नामक पुस्तक में स्थान दिया गया है|

चलित विज्ञान मॉडल “हमर नांगर” को मिली तत्कालीन मुख्यमंत्री की सराहना


लोक सुराज अभियान के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह द्वारा अमलडीहा में संचालित नवाचारी गतिविधियों का अवलोकन किया गया| इस अवलोकन के बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया में शिक्षक शैल कुमार पांडेय के कार्यों की सराहना करते हुए उल्लेख किया कि शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय के द्वारा तैयार चलित विज्ञान लैब “हमर नांगर” के मॉडल का ब्लू प्रिंट को देखा, शिक्षक के द्वारा सराहनीय प्रयास करते हुए बेकार मानी जाने वाली वस्तुओं से विज्ञान के 180 से ज्यादा मॉडल तैयार किए है | बच्चों में विज्ञान के प्रति लगाव और उसको मार्गदर्शन देने का अनूठा प्रयास देखकर बहुत अच्छा लगा|

तत्कालीन मुख्य सचिव सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष बच्चों ने किया विज्ञान प्रदर्शन, मुख्य सचिव ने बच्चों से हाथ मिलाकर किए प्रोत्साहित

सन 2015 में जांजगीर-चाम्पा जिले के विकास कार्यों का अवलोकन करने आए तत्कालीन मुख्य सचिव विवेक ढांड सहित छत्तीसगढ़ शासन के प्रशासनिक अधिकारियों, तत्कालीन जिलाधीश व डीईओ के समक्ष जिले में चल रहे शैक्षणिक गतिविधियों का प्रदर्शन नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डेय द्वारा अपने आश्रम शाला सहित जांजगीर जिले में शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे नए-नए प्रयोग, जिले के प्रशिक्षण में विज्ञान के गतिविधियों की जानकारी दी | साथ ही आश्रम शाला के बच्चों के नेतृत्व में कम खर्च से बने शिक्षण सामग्री का प्रदर्शन भी किया गया | इस दौरान राज्य शासन के प्रशासनिक अधिकारियों ने छात्रों से सवाल भी किए | सवालों के सही-सही जवाब पाकर आदिवासी आश्रम के छात्रों से हाथ मिलाकर हौसला बढ़ाया गया | इस दौरान बच्चों ने न्यूटन वलय का सिद्धांत, हवा का प्रयोग, स्व निर्मित दिशा सूचक यंत्र, चुंबक का प्रयोग, सौर परिवार, चुंबकिय बल रेखाए इत्यादि प्रयोगों का प्रदर्शन प्रदर्शन किए| आश्रम के छात्र बृजलाल के दिखाए मैजिक साइंस का प्रयोग को देखकर काफी सराहना किया गया | प्रशासनिक अधिकारियों को बच्चों ने बताया की हम आदिवासी बच्चे अब जादू जैसे शब्द से नहीं उलझेंगे साथ ही अब साइंस को समझेंगे|

नवाचारों ने दिलाया राज्यपाल पुरस्कार सहित अनेकों उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान


नवाचारी शिक्षक शैल कुमार पाण्डे अपने शिक्षकीय सेवा के प्रारंभ समय से ही शिक्षा के प्रति समर्पित रहे है | इनके द्वारा शिक्षण में सहायक सामग्रियों के साथ-साथ अध्यापन के नवाचारी तरीके तथा विज्ञान के सरल अवधारणा व प्रयोगों के माध्यम से समझाते हुए अध्यापन कराया जाता है| साथ ही शैक्षणिक गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उनके द्वारा अभिभावकों से निरन्तर सम्पर्क करते हुए बच्चों के स्तर अनुरूप मनोहारी एवं सुंदर बनाने का प्रयास करते है | विद्यालय में नवप्रवेशी बच्चों से पौधों का रोपण व उसका संरक्षण भी कराते है | साथ ही साथ खेल-खेल में सीखने-सिखाने को प्राथमिकता भी देते है | बच्चों में नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर भी जोर देते हुए उसी अनुरूप शिक्षण कराते है | इनके इन सभी नवाचारी गतिविधियों की वजह इनको राज्यपाल पुरस्कार सहित अनेकों राज्य व जिले स्तरीय उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान प्राप्त हो चुके है|

पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम के राज्य स्तरीय ब्लॉग लेखक श्रवण कुमार यादव, शा प्रा शाला कोसा, जिला बालोद

ऐसे उत्कृष्ट शिक्षक के सफलता की कहानी को पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम अंतर्गत cgschool.in के राज्य स्तरीय ब्लॉक लेखक श्रवण कुमार यादव, सहायक शिक्षक, शासकीय प्राथमिक शाला कोसा, संकुल केन्द्र गोरकापार, विकासखण्ड गुण्डरदेही, जिला बालोद द्वारा लिखा गया है।

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