हरेली तिहार अउ अंधबिस्वास रचना: वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर,खेमराज साहू गाँव पोंड़ तहसील छुरा ,जिला गरियाबंद

हरेली मतलब हरियाली के प्रतीक माने गे हवे अउ ए हरियाली ह आही कइसे एला जाने के मैं ह प्रयास करें हव कि हरेली तिहार मनाये के कारण का हे अउ हरेली ल हरियाली के प्रतीकात्मक रूप में काबर मानथे।

🍁🌿*हरेली तिहार अउ हरियाली*🌿🍁

छत्तीसगढ़ में अब्बड़ अकन लोक संस्कृति हाबे जेमा कई ठन संस्कृति ह कोनों न कोनों बिसेस दिन ले सुरू होथे जइसे कि हरियाली के बात करथन त हरियाली आही कइसे, हरियाली आए के प्रमुख कारण हे छत्तीसगढ़ के किसान, काबर कि जब तक ले कोनो मनखे ह मेहनत करके बंजर भुइँया ल नई कोड़ही तब तक ले हरियाली नई आवय, अगर अपन भुइँया ल हरियाली म बदलना हे त बंजर भुइँया ल कोड़ के ओमा फसल उगाबे तभे तो भुरवा भुइयां ह हरियर दिखही अउ भुइँया ल हरियर करे बर फसल उगाए बर ओ जगा ल कोड़े बर लगही अउ ओखर औजार घलो लगही, बिना औजार के तो हमन ह कोनों जगा ल कोड़ नई सकन माटी के ढेला ल उड़ेल नई सकन जब हमर कर किसानी करे बर औजार रही तभे हमन ह फसल उगा के भुइँया ल हरियर कर सकथन जेमा लुहार के बनाए औजार ह बुता म लगथे, औजार के प्रयोग करत किसानी बुता करके ही हरियाली ला सकथन अउ एमा बरखा रानी ह घलो शामिल हे।

        🌳🌺🌼 *हरेली पूजा*🌼🌺🌳

बरसात के बेरा म सावन माह के अमावस्या जेला अंधियारी रात कहिथे उही दिन छत्तीसगढ़ के जम्मो किसान मन ह किसानी बुता म काम आथे तेन औजार ल बड़ सुग्घर ढंग ले पानी म धो के ओखर सुम्मत ले पुजा पाठ करथे जेमा चऊर पिसान के चिला रोटी अउ गुड़ के हुम जग देके अपन अपन अराध्य देव ल सुमिरन करथे लइका मन बर बाँस के गेड़ी बनाथे अउ गेड़ी ह घलो बड़ काम आथे जेमा बरसात के दिन म डबरा खोचका के चिखला ले पार करवा देथे काखरो घर के बियारा भाड़ी ल कुदवा देथे अइसन तिहार के बेरा म कई ठन गाँव में तिहार ल जुरमिल के मनाए बर गेड़ी दौड़ के प्रतियोगिता कराथे जेमा जितईया बर इनाम स्वरूप कुछ देके ओखर मान करथे।

   🌿*हरेली तिहार में अंधबिस्वास*🌿

हरेली तिहार के बेरा में अइसन घलो कहें जाथे कि *हरेली तिहार के दिन गाय बछरू मन ल जड़ी बूटी खवाए जाथे अउ ए जड़ीबूटी ल पहाटिया (रउत) मन जंगल ले लान के तिहार के पहिली रात जाग के ओला आगी पानी म उसनथे,ए जड़ी बूटी म बन गोंदली अउ दसमूल (शतावर) रहिथे जेमा जड़ वाला भाग हरे,कतको झन कथे कि जड़ी बूटी ल खम्हार पत्ता के संग गड़ा नुन में मिलाके खवाथे त गाय बछरू ल बरसात के बेरा में लगने वाला बीमारी जइसे बैक्टिरीया वायरस, खुरहा चपका अउ अन्य रोग ले निपदान मिल जाथे,उही प्रकार ले एक ठन अउ मानयता हवय की हरेली के दिन *केवट, लोहार,‌ रउत* भइया मन ह गली-गली किंजरत मनखे मन के घर म जाथे अउ ओखर घर के *मुहाटी में *खिला ल गड़िया के लीम डारा ल खोच देथे*,लीम डारा के खोचे बर कई झन अइसन कथे कि ए लीम डारा ले घर के *तीर आने वाला बीमारी ह तिर नई आवय कहिथे अउ कतको झन ह अइसन काम ल अंधबिस्वास कथे।*
लीम डारा ल अंधबिस्वास तो नई कहि सकन फेर लीम तो करू होथे अउ ओखर कड़वाहट पन के सेती बरसात में निकलने वाला कीड़ा मकोड़ा मन ह घर के दुवारी म नई आय तेकर सेती हरेली तिहार ल अंधबिस्वास के तिहार घलो कहिथे।
हमर छत्तीसगढ़ म गाय बछरू के गोबर ले अंगना दुवारी ल लिपे के बुता करथे अउ यहू ह एक बैग्यानिक प्रयोग ताय जेकर ले घर दुवार म पूरा शुद्धिकरण हो जथे।

You cannot copy content of this page