November 21, 2024

जानिए आखिर क्यों चर्चा में है बालोद जिले की ये गोंदली सभ्यता! कैसे इस जगह का पड़ा था नाम ,डैम से पहले था यहां कभी 25 गांव की संस्कृति का पुराना ठिकाना,,,

1956 में गोंदली डैम बनाने 20 से 25 गांव किए गए थे खाली, करीब 68 साल बाद सूखाया जा रहा डैम तो दिखने लगा प्राचीन शीतला मंदिर और कई कुएं और बावली

बालोद। बालोद जिला मुख्यालय की बात करें तो यहां दो डैम ज्यादा चर्चित है। एक है तांदुला तो दूसरा है गोंदली। जो तांदुला की एक सहायक परियोजना के तहत है । बीएसपी को पानी देने के लिए गोंदली डैम का पानी भी कैनाल के जरिए तांदूला डैम में लाया जाता है। 1956 से बने इस डैम के गेट और अन्य जगहों की मरम्मत हेतु इस बार इसे पूरा सूखाकर खाली किया जा रहा है। लेकिन इस बीच ये डैम चर्चा में इसलिए आया है क्योंकि यहां डैम के बीच एक प्राचीन मंदिर नजर आ रहा। जिसे लोग शीतला माता का मंदिर मान रहे हैं। इस मंदिर के साथ इस जगह की करीब दो सौ साल पुरानी सभ्यता को भी लोग अब याद करने लगे हैं। जो देश की आजादी के पहले यहां फलीफुली थी। पर आजादी के बाद डैम बना तो ग्रामीणों को अपना गांव छोड़ना पड़ा। गोंदली गांव सहित आसपास के सभी गांव खाली किए गए और यहीं आगे चलकर गोंदली डैम बना। आज यहां मिल रहे बावली, कुएं और मंदिर के साथ मिट्टी के कुछ मूर्तियां इस जगह के इतिहास और संस्कृति को बयां करते हैं। जो बताती है कि उस दौर में घने जंगल के बीचोबीच कैसे एक घनी आबादी यहां रहा करती थी। ये जगह भी औरों की तरह आबाद हुआ करता था।

लोगों में पानी बचाने के प्रति विशेष जागरूकता यहां मिले कुएं और बावली से देखने को मिलती है। साथ ही धार्मिक एकता का प्रतीक उनका एक मात्र शीतला मंदिर का अवशेष भी अपनी अनूठी पहचान आज की पीढ़ी को दिखा रहा है। पांच साल से इस मंदिर का कुछ ढांचा नजर आ रहा था लेकिन अब डैम ज्यादा खाली होने से मंदिर का पूरा हिस्सा अवशेषनुमा नजर आ रहा है। यह मंदिर ग्रामीणों के पूर्वजों द्वारा स्थापित बताया जा रहा है। जो करीब 68 साल तक पानी में डूबा रहा। अब जब मंदिर सामने आया तो लोगो की आस्था उमड़ रही है।

20 से 25 गांव आए थे डुबान में

गोंडली डैम जहां बना है वही पर गोंदली नाम का भी गांव हुआ करता था। इसके अलावा करीब 20 से 25 छोटे छोटे टोले, बस्ती नुमा गांव होते थे। जब सिंचाई विभाग ने यहां आजादी के बाद डैम बनाया तो डूबान क्षेत्र में आने वाले ग्रामीणों को आसपास गांव में बसाया गया। उन्हे मुआवजा और जमीन दी गई। आसपास जितने गांव जैसे तरौद, मालीघोरी, कोरगुड़ा, सहगांव खपरी, भैसबोंड , दैहान, अमलीडीह, खेरथाडीह हैं, वहां के बुजुर्ग बताते हैं उनके दादा परदादा पहले गोंदली ग्राम और आसपास रहते थे। डैम की कार्य योजना बनने के साथ सब इधर उधर पलायन कर गए या दूसरे गांव में जाकर बस गए लेकिन उनका मंदिर यहीं रह गया। यही वजह है कि पूर्वजों की यादों को ताजा करता ये शीतला मंदिर आज की युवा पीढ़ी के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है।

भैंसबोड़ के सुरेंद्र देवांगन ने बताया यहां कई बावली और कुंए भी मिलें है। जो पुराने जमाने के लोगों में जल संरक्षण की जागरूकता को भी दर्शाते हैं। मंदिर स्थल पर मिट्टी के कुछ मूर्तियां भी मिली है जिनकी लोग आज भी पूजा कर रहें हैं। डैम बनाया गया तो ये सभी बावली और कुंए यही समा गए। यहां पूरी तरह बरसाती पानी जमा होता है। आसपास का नजारा प्राकृतिक खूबसूरती से भरा पड़ा है। हरियाली लोगो को सहज ही आकर्षित करती है।

पास में चितवा डोंगरी से डैम का विहंगम दृश्य नजर आता है। यहां लोग पिकनिक मनाने केलिए बड़ी संख्या में जाते हैं। हालंकि इलाका सुनसान होने के कारण अपराध की घटना भी इस इलाके में सामने आते रहे हैं। हरेली और नए साल के दिन यहां विशेष भीड़ जुटती है।

गोंदली जलाशय प्रकृति के विभिन्न संसाधनों से परिपूर्ण रहा है। जिले में बड़ी संख्या में जल प्रबंधन हेतु जलाशयों का निर्माण किया गया है। जिसमे से एक प्रमुख गोंदली जलाशय है, जो की जिला मुख्यालय बालोद से लगभग 9 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह जलाशय चारों ओर घने जंगल से घिरा हुआ है। यहाँ के पानी का उपयोग सिंचाई, निस्तारी और तांदुला जलाशय के भराव में भी किया जाता है। साथ ही यहाँ केज कल्चर स्थापित कर मछलीपालन किया जा रहा था जिसे फिलहाल बंद किया गया है।

क्यों पड़ी खाली करने की जरूरत

गोदली जलाशय के मुख्य गेट को बदलने पहली बार खाली किया जा रहा है। वर्तमान में यहां कुछ फीट ही पानी बचा है। जलाशय सूखने के बाद यहां वर्षों पुराना मंदिर दिखाई दिया है, जिसे ग्रामीण शीतला मंदिर बता रहे हैं। लगभग 68 साल बाद इस मंदिर को देखा गया है। मंदिर गोंदली जलाशाय के अंदर पानी में डूबा हुआ था।

मंदिर 200 साल से भी अधिक पुराना बताया जा रहा है।
गोंदली जलाशय का निर्माण 1956 में हुआ था। जबसे जलाशय बना है, तबसे गेट व चैन की मरम्मत नहीं हुई है। हर साल गेट खोलने के दौरान चैन टूटने की घटना होती है। इसलिए सिंचाई विभाग ने इसे बदलने का फैसला लिया। वहीं बांध की सुरक्षा को देखते हुए नया गेट व चैन लगाई जाएगी। डेम सेफ्टी टीम निरीक्षण करेगी। इसके बाद काम शुरू होगा। फिलहाल लोगो का यहां मिले मंदिर कुंए और बावली देखने रोजाना भीड़ जुट रही।

फैक्ट फाइल

1956 में बना है गोंदली जलाशय

68 साल बाद गेट रिपेयर के लिए पानी छोड़ा गया है

80 से 90 साल पहले डूबा शीतला मंदिर है

20 से 25 गांव डूबा हुआ है यहां

50 से 60 कुआं भी जलमग्न हुए

40 से 50 तालाब भी इसी इलाके में आए, इतने बड़े क्षेत्र में डैम का कैचमेंट एरिया है।

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