61 साल की भेलिया बाई कुछ नही भूली: चौथी तक पढ़ी पर हिंदी के पुस्तक में कहां क्या पाठ सब कुछ है याद

सरस्वती शिशु मंदिर जगन्नाथपुर में बच्चों का मार्गदर्शन करने पहुंची भेलिया बाई, पढ़ाई में एकाग्रता को लेकर दी सीख

बालोद। आमतौर पर लोगों को बचपन में क्या पढ़े हैं ज्यादा कुछ याद नहीं रहता। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है बचपन की यादें भी धूमिल होती जाती है। खास तौर से शिक्षा के क्षेत्र में बात करें तो हम जो नया पढ़ रहे हैं वही याद रहता है। पर बचपन की यादें धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। आज हम जगन्नाथपुर की एक ऐसी महिला भेलिया बाई ठाकुर के बारे में बता रहे हैं जो 61 साल की है और चौथी कक्षा तक पढ़ी है। लेकिन चौथी कक्षा की पढ़ाई के दौरान का उन्हें अपने हिंदी पुस्तक का प्रत्येक अध्याय नाम और किस अध्याय में क्या है यह तक याद है। 61 वर्ष की उम्र में भी इतनी अच्छी याददाश्त का होना लोगों को हैरान करता है। महिला का जन्म 1963 में हुआ। 1973 के दौर में उन्होंने अपनी जन्म स्थल ग्राम मेढा, अर्जुनी में कक्षा चौथी तक की पढ़ाई की है। इस पढ़ाई के 51 साल बीतने के बाद भी उन्हें अपनी पुस्तक का प्रत्येक अध्याय मुखाग्र याद है। बुधवार को इस महिला को सरस्वती शिशु मंदिर जगन्नाथपुर में बतौर विशेष मार्गदर्शक के रूप में आमंत्रित किया गया था। जहां उन्होंने बच्चों को पढ़ाई को लेकर ध्यान देने, एकाग्रता बढ़ाने को लेकर विशेष सीख दी। तो वहीं उन्होंने बच्चों के समक्ष अपने दौर के कक्षा चौथी में जो पाठ शामिल थे, अध्याय 1 से लेकर 24 तक की पूरी जानकारी भी बच्चों के समक्ष रखकर उनकी कौतुहलता दूर की। किस पाठ में क्या है यह सभी उन्होंने मुंह जुबानी बताया। यह सब देखकर सरस्वती शिशु मंदिर के विद्यार्थी सहित स्टाफ भी हैरान रह गए।

महिला भेलिया बाई को नारियल, गुलदस्ता भेंटकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रधानाचार्य ताराचंद साहू, आचार्य रेख लाल देशमुख, धनंजय साहू, खेमिन साहू, रीना देशलहरे, भावना सुनहरे, चैन कुमारी नेताम, माधुरी यादव, लक्ष्मी साहू, त्रिवेणी दुबे आदि मौजूद रहे।

याददाश्त बने रहने का ये है कारण

भेलिया बाई ठाकुर ने बताया कि बचपन में जो पढ़े हैं उनका अब तक याद रहने का उनका मूल कारण पढ़ाई से उनका खास जुड़ाव है। उनका कहना है कि पढ़ाई छूटने के बाद भी अपने पुस्तक की गीत कविताओं को ही हमेशा गुनगुनाती रही। उन्हे फिल्मी गाना से ज्यादा जरूरी अपने पुस्तक के गीत कविता दोहा चौपाई पसंद थे। इसके चलते वह खाली समय में इसी को ही गुनगुनाती रहती थी। यह उनकी दिनचर्या में शामिल है। चाहे काम करते हो चाहे कुछ भी करते रहे लेकिन उनके मन और जुबान पर पुस्तक के ही गीत कविता गूंजते रहे और यही वजह है कि इस सिलसिले के चलते वह अब तक उन अध्याय को भूल नहीं पाई और आगे भी नहीं भूल पाएगी ।

इस तरह होते थे उस समय के पुस्तक में अध्याय

उस दौर में बाल भारती हिंदी भाषा के नाम से पुस्तक आती थी जिसमें पाठ 1 से 24 तक अध्याय थे। जिसमें क्रमशः वायुवान, शांति निकेतन, झांसी की रानी, पंच परमेश्वर, ईसा मसीह, गणतंत्र दिवस, पुष्प की अभिलाषा ,लोकमान्य तिलक, महाराणा प्रताप, ईद मुबारक, बाल दिवस, पचमढ़ी चलो, दिल्ली हमारी राजधानी, श्री कृष्ण सुदामा, कबीर, भिलाई इस्पात संयंत्र, अशोक चक्र, महावीर स्वामी, चंद्रशेखर आजाद, परसराम लक्ष्मण संवाद, जंगल में मंगल और बाल्य विवेक आदि अध्याय होते थे। इस अध्याय में क्या लिखा है यह सब उन्हें मुखाग्र याद है।

बच्चों को दिया ज्ञान को आत्मसात करने का संदेश

सरस्वती शिशु मंदिर में आगमन के दौरान भेलिया बाई ठाकुर ने अध्यनरत बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि पढ़ाई जीवन सबसे अनमोल है यह समय लौटकर नहीं आता ।इस जीवन को खास तरीके से जिए और पढ़ाई को अपने जीवन में उतारे। जो शिक्षा ले रहे हैं उसे सिर्फ पुस्तक तक ना रखें बल्कि उनसे सीख लेकर अपने जीवन का उद्धार करें। पढ़ाई से जो हासिल हो रहा है उसे व्यवहारिकता में उतारे और खुद को पढ़ाई के प्रति हमेशा एकाग्र और उत्सुक रखें। भटकाव वाली चीजों से दूर रहें और अपने जीवन में अच्छा इंसान बनने का प्रयास करें। उन्होंने अपने बचपन की शिक्षा को अपने अंदर आत्मसात किया है और यही वजह है कि वह चाह कर भी अपने गुरुजनों द्वारा प्राप्त शिक्षा को भूल नहीं सकती ।आज भी उनके लिए महापुरुषों की जीवनी और कविता उनके जीवन को प्रेरणा देती है। जबकि आज की युवा पीढ़ी फिल्मों और अन्य चीजों से प्रेरणा ले रही है।

शादी में जोड़ों को रामायण देने की भी करती है पहल

भेलिया ठाकुर और उनके पति तियारी राम ठाकुर जगन्नाथपुर में भजिया होटल चलाते हैं। यह बुजुर्ग दंपति शादी में लोगों को रामायण तोहफे के रूप में देते हैं। उनका कहना है कि संसार में रामायण से बढ़कर कोई तोहफा नहीं है। भेलिया बाई कहती है कि ऐसा करने का उनका उद्देश्य वर वधू के दांपत्य जीवन की खुशहाली की कामना करना है। रामायण राम सीता के अटूट प्रेम की गाथा है। रामायण देकर वह नए जीवन की शुरुआत कर रहे वर वधु को रामायण से प्रेरणा लेने की बात कहती है। उनका सोच है कि अगर किसी की शादी हो तो बेटी अपने साथ टिकावन में रामायण लेकर जरूर जाए ताकि इसका सकारात्मक प्रभाव ससुराल पर भी पड़े और जीवन खुशहाल हो।

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