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महिला दिवस विशेष- चूल्हा चौका रोजी मजदूरी तक सिमटी थी कभी, अब 12000 से ज्यादा महिलाओं को साथ लेकर चलती है भीमेश्वरी

पद्मश्री शमशाद बेगम को प्रेरणास्रोत मानकर पेश की है नई मिसाल, घर और गांव से की थी शुरुआत, बदल गए हालात

बालोद। महिला यानी नारी,,, नारी शक्ति के सामने सब कुछ फीका है। आज महिला दिवस पर हम उन्हीं नारियों के हौसले और जज्बे की कहानी को पेश कर रहें हैं जिनकी वजह से और भी कई महिलाएं प्रेरित होती हैं और कड़ी से कड़ी जुड़ कर एक कारवां बन जाता है। बात कर रहे हैं बालोद ब्लॉक के ग्राम बोरी की रहने वाली भीमेश्वरी शांडिल्य की। जिन्हें बालोद क्षेत्र में अपने गांव में सबसे पहले ही महिला कमांडो संगठन की शुरुआत का श्रेय जाता है। बता दें कि महिला कमांडो की प्रमुख प्रेरक पद्मश्री शमशाद बेगम निवासी गुंडरदेही हैं। उनके सानिध्य में और उनसे प्रेरणा लेकर भीमेश्वरी शांडिल्य 10 सालों से महिलाओं को संगठित करने, उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास कर रहीं हैं। पद्मश्री शमशाद बेगम को अपनी गुरु माता मानने वाली भीमेश्वरी की कहानी भी आपको काफी प्रेरित करेगी। क्योंकि उनकी कहानी संघर्षों से भरी है। महिला कमांडो की सोच, महात्मा गांधी के विचारों से मिलती जुलती है। भीमेश्वरी शांडिल्य का कहना है की वह सिर्फ समाज सेवा करना चाहती हैं। वह कहती हैं कि मैंने कभी किताबों में नहीं पढ़ा कि महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाई तो उन्हें पैसा मिला था। उन्होंने समाज सेवा की और अहिंसा व सच्चाई के बल पर आजादी मिली। उनके व्यक्तित्व से वे काफी प्रभावित हुई और महात्मा गांधी के सोच को आगे बढ़ाते हुए महिला कमांडो के संगठन में जुड़ी और अपने जैसी असहाय महिलाओं को सशक्त करने का बीड़ा उठाई। अपने घर से ही शुरुआत करने वाली भीमेश्वरी नशा मुक्ति अभियान को बालोद क्षेत्र में जोर दिया और धीरे-धीरे यह सिलसिला ऐसे बड़ा कि आज गांव गांव में महिला कमांडो नजर आते हैं। गांव में स्वयं के अलावा दूसरों के खेतों में रोजी मजदूरी करने वाली, घर में चूल्हा चौका संभालने वाली भीमेश्वरी शांडिल्य आज नाम की मोहताज नहीं है और यही वजह है कि उन्हें इस बार भी महिला दिवस पर रायपुर में रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी में सम्मानित किया जाएगा। आपको जानकर यह गर्व ही होगा कि भीमेश्वरी शांडिल्य अपने सेन समाज की महिला प्रकोष्ठ की जिला अध्यक्ष भी है। यानी समाज में भी वह महिलाओं का नेतृत्व करती हैं। भीमेश्वरी को इसके पहले भी कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। स्थानीय जिले में भी विभिन्न संगठनों और संस्थाओं द्वारा सम्मान पा चुकी है। तत्कालीन एसपी शेख आरिफ हुसैन के समय में उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान किया गया था।

उन्हें सुपर पुलिस ऑफिसर भी बनाया गया है। 12वीं तक पढ़ी भीमेश्वरी की नेक सोच से उनके साथ 12000 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं। दुर्ग के जन फाउंडेशन ने उन्हें नारी सम्मान मेरा अभिमान पुरस्कार से सम्मानित किया है। तो 2 अक्टूबर महात्मा गांधी की जयंती पर अमृत महोत्सव के दौरान भी गुंडरदेही में सम्मानित किया गया। 10 साल से वह महिला कमांडो संगठन से जुड़े हुए हैं।

महिला कमांडो में कोई पद नहीं सब महिलाओं को बराबर का दर्जा

यह अच्छी बात है कि महिला कमांडो संगठन में कोई पद नहीं है। सब महिला कमांडो को बराबर दर्जा दिया जाता है और इसी के चलते गांव-गांव में महिला कमांडो संगठन जिन्हें प्रोत्साहित करने प्रशिक्षण देने का कार्य प्रेरक शमशाद बेगम के साथ-साथ उनकी सहयोगी के रुप में भीमेश्वरी करती हैं।

जब जंगल के बीच बसे गांव मड़ियाकट्टा में पूरा गांव उन्हें बस चढ़ाने के लिए पहुंचा था,,,,,

शुरुआती दौर में भीमेश्वरी को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह कहती है कि घर में भी काफी कुछ सुनना पड़ता था। घर में तो धीरे-धीरे सुधार हुआ लेकिन गांव में भी लोग ताना मारते थे। महिला कमांडो को लेकर पहले मजाक भी उड़ाया जाता था। लोग कहते थे पुरुष सोए हैं और महिलाएं पागा बांधकर निकले हैं। फिर धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन आया और फिर महिला कमांडो को पुरुषों ने भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने शुरुआती चुनौतियों के बारे में अनुभव साझा करते हुए बताया कि मुझे शमशाद बेगम ने बोरी के बाद अन्य गांव में भी महिला कमांडो संगठन बनाने का दायित्व सौंपा था और इसके तहत उन्हें मड़ियाकट्टा की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्हें लगा कि यह गांव बालोद के आस पास होगा। लेकिन जब बस में सवार हुई और वहां जाने के लिए निकली तो मालूम हुआ, यह तो जंगल के बीच बसा गांव है। पर्वत जंगल को पार करते वह उस गांव में पहुंची। उन्होंने महिला कमांडो के उद्देश्यों को बताया। उनके बातों से वहां की महिलाएं इतने प्रभावित हुई कि हर घर से एक एक सदस्य कमांडो से जुड़ गई और जब उन्हें घर लौटना था तो पूरा गांव उन्हें बस स्टेशन में छोड़ने के लिए आया था। जब वह बस पर सवार होने लगी तो कंडक्टर ने उसे पूछा था कि आप में कुछ तो बात है जो पूरा गांव आपके पीछे आया है। तो उन्होंने जवाब दिया था कि मैं तो एक सामान्य महिला हूं। महिला कमांडो का संगठन बनाने के लिए आई थी। वह दिन था और आज का दिन है। आज भीमेश्वरी हर महिला कमांडो के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी है। इस सभी का श्रेय भीमेश्वरी पद्मश्री शमशाद बेगम को देती है। उनके सानिध्य में वह अपनी जिंदगी को सँवार रही और समाज सेवा कर रही। वर्तमान में भी उनके द्वारा महिला सेल प्रभारी पद्मा जगत के साथ महिलाओं को सुरक्षा के लिए अभिव्यक्ति ऐप के बारे में पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर जागरूकता अभियान भी चला रही हैं। समय-समय पर शासन की विभिन्न योजनाओं के तहत भी सहयोगी जन कल्याण समिति व महिला कमांडो काम करती हैं।

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