असम के कामाख्या देवी मंदिर पहुंची छग से दो विधायक संगीता सिन्हा व ममता चन्द्राकर, दर्शन कर छत्तीसगढ़ की खुशहाली मांगी, मन्दिर के रहस्यों से भी हुई परिचित

बालोद/ रायपुर। संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र की विधायक संगीता सिन्हा इन दिनों असम अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर हैं। जहां उक्त राज्यों के प्रमुखों को छत्तीसगढ़ में आयोजित आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल होने के लिए न्यौता देने गई है। 16 अक्टूबर को वह रवाना हुई तो रविवार को असम गुवाहाटी पहुंचने पर उन्होंने कामाख्या देवी मंदिर में भी दर्शन किए उनके साथ पंडरिया विधायक ममता चंद्राकर व बालोद से डिप्टी कलेक्टर दशरथ सिंह राजपूत भी मौजूद रहे। तीनों ने छत्तीसगढ़ की खुशहाली की कामना की। वही कामाख्या देवी मंदिर के खास विशेषता व वहां की परंपराओं से परिचित हुई जो की रहस्यमई भी हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। बल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढंका रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं।

मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती है।

जब छत्तीसगढ़ से दोनों विधायक संगीता सिन्हा व ममता चंद्राकर इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंची तो यहां बलि प्रथा के तहत एक बलि भी दी गई थी जिसके वे साक्षी बने। साथ ही ब्रम्हपुत्र नदी का भी दीदार किया गया। जिसके बारे में मान्यता है कि हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है।