बालोद जिले के इस गांव में मनी अनूठी देव दशहरा- मन्नत पूरी होने पर भक्तों ने मंदिर में चढ़ाएं मिट्टी के घोड़े, देखिये रोचक तस्वीरें व खबर
बालोद। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर घीना डैम के पास बने हरदे लाल मंदिर में नवरात्रि के बाद वाले मंगलवार को आठ गांव के ग्रामीण देव दशहरा मनाते हैं। मंगलवार को यह आयोजन हुआ। इस बार कोरोना काल के चलते मंदिर परिसर में मेला का आयोजन नहीं हुआ। पर लोगों ने आस्थावश मिट्टी के घोड़े इस मंदिर में चढ़ाने के लिए दूर दराज से पहुंचे थे। देर शाम तक आयोजन चलता रहा।
ज्ञात हो कि बालोद जिले में यह मंदिर मिट्टी के घोड़ों के नाम से अपनी अलग पहचान बना चुका है। जिसके चलते यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और यहां मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। यहां जिले की अनोखी दशहरा मनाई जाती है। ग्राम पांड़े डेंगरापार के पांड़े जाति के ग्रामीणों के लिए बाबा हरदेव लाल ही ईष्ट देव है। यहां तीन सौ साल से रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। अलग से विजया दशमी नहीं मनाते, जैसा अन्य गांव में मनाया जाता है। यहां के लिए हरदेव लाल का देव दशहरा ही प्रमुख त्योहार है। जहां ग्रामीण मनोकामना पूरी होंने पर घोड़े की प्रतिमा चढ़ाते है। मंदिर की मान्यता के कारण बालोद सहित अन्य जिले से भी लोग घोड़ा चढ़ाने के लिए यहां आते हैं।
Daily Balod News ने देव दशहरा व हरदेलाल से जुड़ी खास तथ्यों का पता लगाया। ग्रामीणों ने एतिहासिक बातों का उल्लेख करते हुए अपनी भक्ति भावना प्रकट की। डेंगरापार के गौतम साहू, कसही कला के कोमल साहू ने कहा कि लगातार मंदिर में भीड़ जुट रही है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी मांग की जा रही है।
कौन थे हरदेवलाल आज तक पता नहीं
हरदेव लाल असल में कौन थे। आज तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला। मंदिर के बैगा धनसिंह नेताम, रिखीराम नेताम ने बताया कि बुजुर्गों से सुनी कहानी के अनुसार तीन सौ साल पहले एक व्यक्ति घोड़े में सवार होकर आया था। जिसे ग्रामीण चमत्कारी मानते थे। उसका नाम हरदेव लाल था। विक्षिप्त व अन्य परेशानी से पीड़ित लोगों की वे इलाज करते थे। अचानक वे गायब हुए। उनके जाने के बाद उनकी याद में ग्रामीणों ने मंदिर बनाया। पहले झोपड़ीनुमा मंदिर था। अहिबरन नवागांव के रूपचंद जैन ने दान राशि देकर मंदिर बनवाया।
हर साल चढ़ाई जाती हैं दो सौ से तीन सौ प्रतिमाएं
ग्रामीण हर साल दो सौ से तीन सौ घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं। हरदेव लाल की सवारी घोड़ा थी। इस कारण ग्रामीण घोड़ा चढ़ाते हैं। अंग्रेज शासन काल में 1876 में घीना डैम का निर्माण हुआ। उसके पहले से मंदिर का अस्तित्व है। मंदिर समिति के उपाध्यक्ष व घीना निवासी उपसरपंच व समाजसेवी डाल चंद जैन ने बताया कि लोगों की आस्था के कारण आज दूर दूर से ग्रामीण घोड़ा चढ़ाने के लिए आते हैं।
इन ग्रामों के लिए प्रमुख पर्व
नवरात्रि के बाद आने वाले पहले मंगलवार को मन्दिर परिसर में देव दशहरा मेला लगता है। करीब तीन सौ साल से आयोजन हो रहा है। जहां डेंगरापार, हड़गहन, घीना, अहिबरन नवागांव, कसहीकला, लासाटोला, गड़इनडीह परसवाणी के आठ हजार से अधिक ग्रामीण हर साल दशहरा में एकत्रित होते हैं। इस बार कोरोना के चलते भीड़ कम रही। जिन लोगों की मन्नत पूरी हुई है। वे उपहार स्वरूप हरदेव लाल को घोड़ा प्रतिमा चढ़ाते हैं। आठ गांव के लिए ये देव दशहरा प्रमुख पर्व है।
इस तरह होता है आयोजन
सभी गांव से घोड़ा चढ़ाने वाले ग्रामीण कतार में मंदिर पहुंचते है। डांग डोरी भी लाया जाता है। सेवा गीत चलती है। मंदिर परिसर में मेला लगता है। भीड़ इतनी होती है कि रात 10 बजे तक प्रतिमा चढ़ाने का सिलसिला चलता है। इस बार मेला नही लगा। इससे भीड़ कम रही। दूर दूर से आने वाले ग्रामीण एक दिन पहले डेंगरापार के बैगा के घर या अपने परिचित के पास प्रतिमा पहुंचाते हैं। जिसे मेला के दिन वे खुद या दूसरे के माध्यम से जंवारा की तरह सिर में रखकर मंदिर में चढ़ाने के लिए आते हैं।