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डॉक्टर्स डे विशेष- नई-नई शादी पर दुल्हन से ज्यादा इन्हें रहती है मरीजों की चिंता, दुल्हन भी समझदार, डॉक्टर और शिक्षक ने पेश की कोरोना वारियर की अनूठी मिसाल, इन्हें लोग डॉक्टर कम बेटा ज्यादा पुकारते हैं

भावना फाउंडेशन के सक्रिय सदस्य के रूप में भी पति-पत्नी कर रहे हैं काम, जुटे हैं जन सेवा में

बालोद/ गुंडरदेही।डॉक्टर्स डे 1 जुलाई को मनाया जाता है। डॉक्टर जिन्हें भगवान का दर्जा भी दिया जाता है। इस कोरोना महामारी के दौर में डॉक्टरों का महत्व भी बहुत बढ़ गया है और यह आवश्यक भी है कि हम उनके कार्यों का सम्मान करें। इस डॉक्टर डे पर हम आज ऐसे  डॉक्टर व उनकी शिक्षिका पत्नी की कहानी बता रहे हैं। जिसका मूल निवास तो बघमरा गुंडरदेही बालोद जिला है। पर वे वर्तमान में नवापारा राजिम में रहते हैं और ग्रामीण चिकित्सा सहायक है। बात हो रही है बालोद के दामाद डॉक्टर लोकेश कादम्बिनी पारकर की।जो कि समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोबरा नवापारा में पदस्थ है। डॉ लोकेश पारकर व बालोद के बड़गांव हायर सेकेंडरी स्कूल में पदस्थ कादम्बिनी यादव दोनों की कुछ साल पहले ही शादी हुई। शादी के बाद एक दूसरे के साथ गृहस्थी को ठीक से बिता ही नहीं पाए थे कि कोरोना महामारी का दौर शुरू हो गया। फिर डॉक्टर व उनकी पत्नी दोनों ही लोगों की सेवा में इस तरह जुट गए कि उन्होंने खुद से ज्यादा लोगों को समय देना शुरू किया और यही वजह थी कि आधी रात को भी इनके घर का बेल  बजता था ये दोनों उठकर  पीड़ितों का इलाज करते थे और इसी सेवा भाव के चलते विशेष कोरोना वारियर के रूप में उन्हें विभिन्न संस्थाओं व शासन प्रशासन द्वारा भी सम्मानित किया गया है। खास बात यह है कि डॉक्टर पारकर के  मार्गदर्शन से कई कोरोना प्रभावित होम आइसोलेशन  के दौरान ही जरूरी सलाह लेकर ठीक हुए  तो वहीं सैकड़ों मरीजों का इलाज उन्होंने किया। इस दौरान उन्होंने खुद की भी पूरी सुरक्षा बरती और अब तक खुद को भी कोरोना से बचाए रखा है। जहां एक ओर स्वास्थ्य विभाग भी इसके चपेट में आता रहा। वहां डॉक्टर पारकर व उनकी पत्नी कोरोना से डटकर सामना करते रहे। अपने इन्हीं सेवा भाव के कारण उन्हें नवापारा राजिम व बघमरा में सब डॉक्टर के बजाय बेटा कहकर पुकारते हैं। भावना फाउंडेशन से भी जुड़ कर दोनों पति-पत्नी सक्रिय सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं और जन सेवा में जुटे हुए हैं।
11 साल से हैं कार्यरत


वे ऐसे कोरोना वारियर हैं जो अपने मिलनसार और सहयोग की भावना से गोबर नवापारा ,राजिम और आसपास के गांव में सब के चहेते चहरे हैं। विगत 11 साल से यहां कार्यरत है। जब से कोविड आया है तब से आज पर्यन्त अपने कर्तव्यों में डट कर लगे हुए हैं और आज भी उनका उल्लास और काम करने का जज़्बा कम नही हुआ है।आज भी वो अपनी कोविड ड्यूटी पूरी ऊर्जा के साथ निभा रहे हैं। रेल्वे स्टेशन ,आइसोलेशन सेंटर से लेकर सैम्पल कलेक्शन एवं वैक्सिनेशन की ड्यूटी भी अनवरत कर रहे है। जब लोग घर से निकलने से डर रहे थे तब पारकर  अपनी सैंपल कलेक्शन टीम  के साथ टेस्टिंग को एक नया आयाम प्रदान कर रहें थे। टीम के इंजार्च के रूप में अपनी महती भूमिका निभाई। कभी किसी को कोई तकलीफ़ नही होंने दिए। टीम में उनके साथ लैब टेक्नीशियन  रामावतार यादव और पायलेट  भरत साहू भी रहे। टीम ने अपने कर्तव्यों का दाईत्व भली भांति निभाया हैं। लोग कोविड के नाम से डरते है, ऐसे दौर में न जाने कितने कोविड पॉजिटिव पेशेंट के सम्पर्क में  आये फिर भी धैर्य और हिम्मत का परिचय दिया और कोविड पेशेंट को भी सहानुभूति पूर्वक सपोर्ट करते हुए उनको मौरल स्पोट प्रदान किये। एक दौर ऐसा भी आया कि पति पत्नी दोनो को खुद भी 3,4 दिन के लिए क्वारेंटाइन भी होना पड़ गया | पर वो समय भी सकुश बीत गया। शुरुआती समय में  जब अहमदाबाद के कुछ नागरिक चम्पारण में लाकडाउन की वहज से फस गए थे, तब उनके सतत हैल्थ चैकअप की जिम्मेदारी भी इनको दी गई थी जहां उन्होंने  सपत्नीक अपनी जवाबदारी निभाई।  अपने साथ साथ ही अपनी पत्नी को भी कुछ सामान्य और आवश्यक चिकित्सा तकनीकी सीखा दिये हैं। वो भी उनके साथ आवश्यकतानुसार कदम से कदम मिला कर साथ देती हैं।
मिला चुका ये सम्मान
उनकी इस फील्ड में अलग पहचान हैं ,तत्कालिक विधायक के कर कमलों से और विभिन्न संस्थानों से कोरोना वारियर सम्मान से भी सम्मनित किये जा चुके हैं।साथ ही इस वर्ष स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा भी प्रशस्ति पत्र एवं मेडल से उन्हें  सम्मानित किया गया है।

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