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प्रकृति से प्यार ऐसा भी-घर के राशन में कटौती कर ये शख्स अपनी 18 हजार रुपए की सेलरी में से हर महीने 3 हजार रुपए पर्यावरण पर खर्च करते हैं, कर चुके 23 साल में 30 हजार पौधे रोपित, बंजर पहाड़ पर बना दिया जंगल

बालोद/ कांकेर।
कोरोना संक्रमण काल के दौरान ऑक्सीजन की जद्दोजहद हम सबने देखी है। देश में कई जगह पेड़ों के कटने का विरोध भी शुरू हुआ। ऐसे में छत्तीसगढ़ के कांकेर में बंजर जमीन को जंगल बना रहे हैं वीरेंद्र सिंह। पिछले 23 सालों में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगाए और 35 से ज्यादा तालाबों की सफाई कर चुके हैं। खास बात यह है कि घर के राशन में कटौती कर वीरेंद्र सिंह अपनी 18 हजार रुपए की सेलरी में से हर महीने 3 हजार रुपए पर्यावरण पर खर्च करते हैं। लोग प्यार से उन्हें ग्रीन कमांडो बुलाने लगे। पर्यावरण बचाने की उनकी इस लगन के चलते ही केंद्र सरकार ने साल 2020 में उन्हें वॉटर हीरो के सम्मान से नवाजा है।

प्राइवेट स्कूल का एक टीचर, बन गया वाटर हीरो

मूल रूप से बालोद जिले के रहने वाले 46 साल के वीरेंद्र सिंह दल्ली राजहरा के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे। वहां भी उन्होंने स्थानीय लोगों और पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर सैकड़ों पौधे रोपे, जो अब पेड़ बनकर लोगों को छांव के साथ ऑक्सीजन भी दे रहे हैं। इसे देखते हुए लोग प्यार से उन्हें ग्रीन कमांडो बुलाने लगे। पर्यावरण बचाने की उनकी इस लगन के चलते ही केंद्र सरकार ने साल 2020 में उन्हें वाटर हीरो के सम्मान से नवाजा है।

एक बंजर पहाड़ के करीब 5 एकड़ हिस्से में पौधे लगाए

शुरुआत पिछले मानसून में 2 हजार पौधों के साथ हुई। इस बार 4 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य हैं और 3 हजार लगा भी चुके हैं। एक बंजर पहाड़ के करीब 5 एकड़ हिस्से में पौधे लगाए। शुरुआत पिछले मानसून में 2 हजार पौधों के साथ हुई। इस बार 4 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य हैं और 3 हजार लगा भी चुके हैं।

बंजर पहाड़ के 5 एकड़ में अब हराभरा जंगल

इसके बाद वीरेंद्र सिंह की नौकरी कांकेर के भानुप्रतापपुर स्थित डोंगरी माइंस में लग गई। घर और गांव छूटा, लेकिन जज्बा नहीं। नौकरी के साथ पर्यावरण को बचाने का काम यहां भी शुरू हुआ। गांव-गांव जा कर ग्रामीणों को जागरूक किया। फिर इलाके में स्थित एक बंजर पहाड़ के करीब 5 एकड़ हिस्से में पौधे लगाए। शुरुआत पिछले मानसून में 2 हजार पौधों के साथ हुई। इस बार 4 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य हैं और 3 हजार लगा भी चुके हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने साल 2008 में राजधानी रायपुर से 8 युवाओं के साथ साइकिल यात्रा पर निकले थे।

रायपुर से कन्याकुमारी और बाघा बॉर्डर तक साइकिल यात्रा
पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने साल 2008 में राजधानी रायपुर से 8 युवाओं के साथ साइकिल यात्रा पर निकले थे। लोगों को पर्यावरण को बचाने का संदेश देते हुए कन्याकुमारी और वहां से बाघा बॉर्डर पहुंचे। वापस रायपुर पहुंचने में 5 माह से ज्यादा का वक्त लग गया था। इस बीच जिन-जिन शहरों से हो कर गुजरे वहां के लोगों को पर्यावरण को बचाने जागरूक किया। रास्ते में जितने भी नदी-नाले मिले सभी की सफाई भी की।पिछले 23 सालों में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगाए और 35 से ज्यादा तालाबों की सफाई कर चुके हैं। कहते हैं कि इनके बिना भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

वीरेंद्र कहते हैं- संतुलन के लिए जल और जंगल दोनों जरूरी

वीरेंद्र बताते हैं कि वे बालोद, भिलाई, दुर्ग, बेमेतरा और कांकेर जिले में अब तक 20 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके है। इनमें आम, गुलमोहर सहित अन्य छायादार व फलदार पौधे है। भानुप्रतापपुर में ही 10 हजार से ज्यादा पौधे रोपे गए हैं। कहते हैं कि सैलरी के 15 हजार में बच्चों की पढ़ाई और घर का राशन आता है। हम दाल-चावल और सब्जी खाकर भी रह सकते हैं, पर पर्यावरण संतुलन व जीवन के लिए जल और जंगल दोनों जरूरी हैं।

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