“हां मैंने सूरज को डूबते देखा है” रचना:कुमारी मौली साहू क्लास दसवी नर्मदा धाम सुरसुली
हां मैंने सूरज को डुबते देखा हैं
तलाब मे खिले उन कमलों को सिकुड़ते देखा है ,
चड़िया को अपने घोंसला कि ओर मुड़ते देखा है
हां मैंने सूरज को डुबते देखा है ।
सुरज को अपनी रोशनी खोते देखा है
चकवा और चकई को रोते देखा हैं,
हां मैंने सूरज को डुबते देखा है ॥
इसे देखकर ऐसा प्रतित होता है जैसे,
फिर ना आएगा लौटकर ,
लेकिन जरूर आएगा ये रात्रि का गला घोंटकर
गांव के उन मजदूरों को खेतों से आते देखा है ,
हां मैंने सूरज को डुबते देखा है ।।