07से 16 सितंबर 2024 समारोह विशेष,,
राजा चक्रधर सिंह पोर्ते समारोह
छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक धरोहर के साथ-साथ सांस्कृतिक, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कला ,साहित्य ,नृत्य संगीत, जीवन का अभिन्न अंग है, जो जीवन के अंतरंग को सतरंगी छटा से आलोकित करती रही है।
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ प्रांत के रायगढ़ जिला में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले "चक्रधर समारोह "की । यह धरती ऐतिहासिक रूप से रियासत ,सियासत, विरासत की रही है राजा महाराजाओं का 36 किला छत्तीसगढ़ है।
महाराजा चक्रधर सिंह छत्तीसगढ़ में रायगढ़ रियासत के राजा एवं गोंडवाना वंश के शासित बरगढ़ की प्रमुख भुपदेव सिंह के पुत्र थे। जिनका जन्म 19 अगस्त 1905 और देहांत 7 अक्टूबर 1947 को हो गया था चक्रधर सिंह नन्हेमहाराज के नाम से जाने जाते थे। वे तीन भाई थे नटवर सिंह ,चक्रधर सिंह और बलभद्र सिंह। चक्रधर सिंह वर्ष 1924 में अपने बड़े भाई राजा नटवर सिंह के देहांत के बाद वे राज गद्दी पर बैठे ।1924 से 1947 तक राजगढ़ रियासत के शासक थे।
उनकी उच्च शिक्षा राजकुमार महाविद्यालय रायपुर से हुई ,वह गायन, वादन अभिनय एवं नर्तन के विशेषज्ञ थे ।उन्होंने संगीत एवं नृत्य विधा में बहुमूल्य कृतियों की रचना की ।वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार (छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग) के द्वारा महाराजा चक्रधर सिंह के सम्मान में “चक्रधर सम्मान ” दिया जाता है।
रायगढ़ की इस सांस्कृतिक विरासत को सबसे मजबूत करने का काम यहां की राजा चक्रधर सिंह ने ही किया। चक्रधर सिंह अच्छे तबला और सितार वादक होने के साथ तांडव नृत्य में भी पारंगत थे ,उन्होंने कत्थक के लखनऊ और जयपुर घराने से जुड़े गुरुओं को रायगढ़ बुलाया कत्थक की इन दोनों शैलियों के मेल से उन्होंने कत्थक की एक नई “रायगढ़ शैली ” की शुरुआत की।
राजा चक्रधर ने संगीत और काव्य पर बहुत से ग्रंथो की रचना की थी उनके प्रमुख रचनाएं _ नर्तक सर्वस्व , तालतोयनिधि , तलब पुष्पकर , राजरत्न मंजूस, मुराजपरन पुष्पकर। उनकी उर्दू भाषा पर भी बेहतरीन पकड़ थी उन्होंने फरहद के उपनाम से उर्दू भाषा में गजलें भी लिखी।
उनकी संस्कृत उर्दू एवं हिंदी में प्रकाशित पुस्तकें _१) रत्नहार(२)काव्य कानन(३) रम्यराज (४) बैरागढ़िया राजकुमार (५) निगोर फरहद(६) अलकापुरी – तीन भाग में ।(७) जोशे फरहद(८) माया चक्र (९)प्रेम के तीर। उनके प्रमुख रचना “तालतोयनिधि “32 किलो वजनी पुस्तक है । उनका जन्म गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था उनके पिता ने उनके जन्म की खुशी में गणेश चतुर्थी के दिन शहर में उत्सव मनाना शुरू किया था । गोंडराजे चक्रधर सिंह की याद में 1985 से गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहां के राजघराने शास्त्री संगीत और नृत्य महोत्सव के रूप में गणेश मेला (चक्रधर समारोह) शुरू कर दिया। इसमें देश के बड़े-बड़े कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे । बाद में साल 2001 में जिला प्रशासन ने उत्सव की जिम्मेदारी ली ।यह गणेश मेला आज इस राज्य में एक यश त्यौहार बन गया है। इस समारोह में उल्लास के घुंघरू, आनंद की रागनी खुशियों की रोशनी इंद्रधनुष की तरह बिखर रही है। जहां बड़े-बड़े ख्यातिलब्धियों का सुर ताल , लय शाश्वत स्पंदन के साथ निरंतर गतिमान है। आज छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम से 39वां चक्रधर समारोह उनके यादों को ताजा कर मनाया जा रहा है।
संकलित रचना _
“मदन मंडावी”
ढारा, डोंगरगढ़,राजनांदगांव