जड़ भरत एवं प्रहलाद चरित्र कथा सुन भावुक हुए जनमानस
बालोद। ग्राम खपरी (लाटाबोड़) में श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महापुराण के तृतीय दिवस में युवा कथावाचक पंडित दानेश्वर प्रसाद मिश्रा के मुखारविंद से जड़ भरत एवं प्रहलाद चरित्र की कथा श्रवण कर भावुक हुए जनमानस।
कथावाचक आचार्य जी ने बताया कि जडभरत जी का चरित्र यह ज्ञान देता है कि मन की आसक्तियाँ ही बार-बार जन्म लेती है और मरण में लाती हैं।आसक्ति ही दुःख देती है, जन्म-मरण के चक्र में फँसा देती है। गुरु भगवान के सानिध्य में ज्ञान और भक्ति से ही इस आसक्ति को काट सकते हैं और भगवान के चरणों में लगा सकते हैं। जो लोग भगवदाश्रित अनन्य भक्तों की शरण ले लेते हैं, उनके पास अविद्या ठहर नहीं सकती। फिर भरत जी ने प्रभु का ध्यान करते हुए शरीर त्याग दिया।विष्णुपुराण की एक कथा के अनुसार जिस समय असुर संस्कृति शक्तिशाली हो रही थी, उस समय असुर कुल में एक अद्भुत, प्रह्लाद नामक बालक का जन्म हुआ था। उसका पिता, असुर राज हिरण्यकश्यप तथा मां कयाधु थी| वह हिरण्यकशिपु और कयाधु के चार पुत्रों में सबसे बड़ा था | जिस तरह बालक प्रहलाद अपनी दृढ़ भरी हरीभक्ति में सफल रहा. ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए दौड़े चले आते हैं. यह बात प्रहलाद के जीवन चरित्र में देखने को मिलती है. सच्ची सच्ची भक्ति से सब कुछ पाया जा सकता है, ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए हम प्राणी को भी सच्ची भक्ति के साथ उस परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।