November 22, 2024

जहां नक्सलियों के आतंक से लोग कांपते हैं वहां खुशियां लाने के लिए शिक्षा के स्रोत को दीवारों व गलियों से फैला रही मनीषा, पढ़िए दंतेवाड़ा की शिक्षिका की प्रेरक कहानी, राज्य स्तरीय ब्लॉग लेखक विवेक धुर्वे की कलम से

दंतेवाड़ा-छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिला दंतेवाड़ा,विकासखंड-गीदम की एक शिक्षिका मनीषा सोनी इन दिनों जो गलियां नक्सली आतंक से सुनी रहती थी उन गलियों में शिक्षा की अलख जगा रही है। गलियों और दीवारों में प्रिंटरिच वातावरण निर्माण करके बच्चों के साथ साथ ग्रामीणों को भी शिक्षा से जोड़ रही है क्योंकि उनका मानना है कि जिंदगी में खुशियां हासिल करने के लिए शिक्षा एकमात्र स्रोत है।

इस शिक्षिका मनीषा सोनी की प्रेरक कहानी को राज्य स्तरीय ब्लॉग लेखक विवेक धुर्वे (बालोद जिले के शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल सांकरा ज के व्याख्याता) ने लिखी है। जो आज पढ़ाई तुंहर दुआर पोर्टल में भी प्रकाशित हुई है। जिसे पढ़कर पूरे छत्तीसगढ़ के शिक्षक और बच्चे प्रेरणा ले रहे हैं। जिनके हौसलों के बल पर आज अपने संकुल स्तर पर पूरे गाँव को एक प्रिंटरिच वातावरण से खुशनुमा बना दिया गया है। जिन्होंने कोरोना वैश्विक महामारी जैसी कठिन परिस्थितियों में भी दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित जिले में अपने गाँव के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ के रखा हुआ है| इनका विद्यालय एक ऐसी जगह में स्थापित है जहाँ प्रायः मजदूर संवर्ग के लोग ज्यादातर निवास करते है| उनके बच्चे इनके विद्यालय में पढ़ते है ,जो कि काफी प्रतिभावान, जिज्ञासु व कर्मठ है | इन्ही बच्चों के भावों के कारण आज इनको प्रेरणा मिली और ये अपने विद्यालय को अच्छा बनाने की राह पकड़ ली|
छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला हमेशा सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच चल रही हिंसा के दौर के लिए जाना जाता रहा है | ये पूरे देश का सबसे संवेदनशील इलाका माना जाता है , जहां कोई आना नहीं चाहता |
प्रारंभ में इन्होंने शून्य निवेश नवाचार के माध्यम से अपने विद्यालय में ही विभिन्न प्रकार के TLM का निर्माण कर बच्चों के लिए तैयार किया जिनसे उनको उससे शिक्षा के साथ-साथ जो वस्तु उपयोग में नही थी, और खराब हो चुकी वस्तु को कैसे नई व उपयोगी बनाया जाए ये प्रेणना भी मिली|
ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोग बहुत गरीब हैं, और केवल कुछ बुनियादी जरूरतों की व्यवस्था में अपना पूरा दिन बिताते हैं | हालांकि, देश के हर कोने में उचित शिक्षा प्रणाली की संभावना को बनाने के लिए सभी को व्यापक प्रयास की आवश्यकता है |देश में शिक्षा प्रणाली के स्तर को बढ़ाने के लिए सभी की सक्रिय भागीदारी की जरूरत है। स्कूलों और कॉलेजों को अपने छात्रों के हित और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा के कुछ मुख्य उद्देश्यों को स्थापित करना चाहिए।
इनका कहना है कि शिक्षा से दुनिया में मौजूद सभी चीजों के बारे में पता चलता है | शिक्षा, इंसान के दिमाग और व्यक्तित्व को पूरी तरह बदल देती है, और उसे सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है | शिक्षा के माध्यम से ही इंसान अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने से सफल हो सकता है | शिक्षा, मनुष्य के जीवन में खुशी हासिल करने का एकमात्र स्त्रोत है |
दंतेवाड़ा का जिक्र आते ही हमारे मन में अचानक नक्सली हिंसा की तस्वीरें उभरकर सामने आने लगती हैं | पूरे देश में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा को नक्सली हिंसा ने विकास की मुख्यधारा से दूर कर दिया है या यूँ कह लीजिये कि पिछड़ेपन की ओर धकेल दिया है| यहां दूर दराज के गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है | शिक्षा की बात करें तो आलम यह है, कि कहीं स्कूल नहीं है तो कहीं शिक्षक नहीं है| लेकिन अब दंतेवाड़ा की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल रही है। सुरक्षा बल एक तरफ शांति बहाल करने में जुटे हैं, तो वहीं दंतेवाड़ा में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सुदूर गांवों में जाकर बिना किसी आर्थिक लाभ के शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। ऐसे लोगों की कर्मठता यह बता रही है, कि अब यह आदिवासी क्षेत्र शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा।

ऑनलाइन कक्षा/मोहल्ला कक्षा/प्रिंटरिच वातावरण से पढ़ाई निरंतर जारी-
अब जब अचानक से पूरे देश मे कोरोना महामारी दस्तक दे दी | ऐसे में सभी बच्चों की शिक्षा चरमरा गई, ऐसे कठिन परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ शासन की योजना ‘पढ़ई तुंहर दुआर’ ने ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों को जोड़ने की शुरुआत की और शिक्षा को फिर से बच्चों के पास लेकर आ गए और इस शिक्षिका ने जुलाई 2020 से नवंबर 2020 तक 105 ऑनलाइन कक्षा लेकर बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखी | जिसमे पालकगण का भी विशेष योगदान था |
जब कोरोना महामारी एक सामान्य स्थिति में आईं तो छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशानुसार मोहल्ला कक्षा की शुरुआत इनके द्वारा की गई दिसंबर 2020 से मार्च 2021 तक कोरोना महामारी के सभी निर्देशो का पालन कर सोशल डिस्टेंस, मास्क,सेनेटाइजर इन सभी के उपयोग के साथ पालक की अनुमति से शिक्षा की शुरुआत हुई, जिसमें प्रतिदिन 30 से 35 विद्यार्थी लाभान्वित होते थे।


वर्तमान में मोहल्ला कक्षा के बंद के उपरांत विद्यालय के अन्य शिक्षक स्टाफ के सहयोग से प्रिंटरिच वातावरण जिसमे A to Z, आकार, रंग, दिनों, फलो के नाम,तितली का जीवन चक्र, पहाड़ा की समझ, आरोही, अवरोही क्रम,गिनती आदि से तैयार किया गया | जिसे पालकगण व ग्रामीण में खुशी का वातावरण है | इनका उदेश्य है कि हर बच्चा किसी भी स्थिति में उनकी पढ़ाई न रुके तथा छात्र शाला के अंदर पढ़ाई करे और जब बाहर निकले तो अपने ही विद्यालय की दीवारों व मोहल्लों की दीवारो में अपनी शिक्षा ग्रहण कर ले |

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