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नवरात्रि विशेष: अद्भुत रहस्य से भरा है मालीपानी माता का स्थल, साल भर रहता है कुंड में ठंडा पानी, कभी नहीं पड़ता यहां सूखा

सुप्रीत शर्मा ,बालोद। नवरात्रि के इस पावन पर्व पर हम बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक के घने जंगलों के बीच स्थित एक मालीपानी नामक धार्मिक स्थल के बारे में बता रहे हैं। जहां के अपने जल कुंड की विशेष मान्यता है। आपने छत्तीसगढ़ के बलरामपुर के तातापानी के बारे में तो सुना ही होगा जहां भूगर्भ से हमेशा गर्म पानी निकलता है। इसी के विपरीत आपको बालोद जिले में माली पानी में भूगर्भ से हमेशा ठंडा पानी का स्रोत देखने को मिल जाएगा। अगर सरकार, पर्यटन और वन विभाग सहित जिला प्रशासन ध्यान दें तो इस जगह को विशेष पर्यटन स्थल के रूप में संरक्षित किया जा सकता है। पर अभी तक यह वनांचल और घने जंगलों के बीच होने के कारण सुविधाओं के अभाव से आसपास के गांव के बीच तक ही सिमटा हुआ है। इस मालीपानी को माता स्थल मानकर यहां दोनों नवरात्रि में ज्योत जलाए जाते हैं। यहां के कुंड का पानी कभी नहीं सूखता है। हैरान करने वाली बात यह है कि गर्मी हो या बरसात हो कुंड में जिस स्तर तक पानी भरा रहता है उसी स्तर तक हमेशा बना रहता है। चाहे कुंड से कितना भी बाल्टी पानी निकालो जल स्तर ज्यों का त्यों हो जाता है। बारिश के दिनों में यह ओवरफ्लो तक नहीं होता। कहते हैं कि इस कुंड के भीतर सांपों और कछुए का भी बसेरा है। इसलिए यहां नाग देवता की भी विशेष पूजा होती है। कुंड के सामने नाग देवता की प्रतिमा भी स्थापित है। तो वही लोगों की आस्था है कि यहां के पानी में नहाने से या धोने से खाज खुजली जैसे चर्म रोग दूर हो जाते हैं। निसंतान भी अपनी मनोकामना लेकर यहां जोत जलाने के लिए आते हैं। आसपास प्राकृतिक छटा बिखरी हुई है। लेकिन शासन प्रशासन के अनदेखी के चलते इस जगह का विकास नहीं हो पा रहा है। इस जगह तक पहुंचने के लिए लोगों को कच्ची पगडंडी नुमा रास्ते से होकर जाना पड़ता है। रात या शाम को यहां पहुंचना या ठहरना मुश्किल होता है। बिजली की उचित व्यवस्था नहीं है। सोलर ऊर्जा के भरोसे यहां के पुजारी और द्वारपाल गुजारा कर रहे हैं। स्थानीय विधायक सहित शासन प्रशासन से कई बार इस जगह के उद्धार के लिए मांग की जा चुकी है। लेकिन अभी तक अपेक्षित कार्य यहां नज़र नहीं आ रहे। अगर इस जगह को शासन प्रशासन प्रमुखता से ध्यान दें तो बालोद जिले में इसे एक अलग पहचान मिल सकती है। जिस तरह से हम छत्तीसगढ़ में बलरामपुर जिले के तातापानी को वहां भूगर्भ से निकलने वाले गर्म पानी के रूप में जानते हैं तो उसी तरह इस माली पानी कुंड को हम ठंडे पानी के रहस्यमई स्रोत के रूप में पहचान दिला सकते हैं। इस कुंड में कहां से पानी आता है किसी को आज तक समझ नहीं आया है। पूरे साल भर यह हमेशा भरा रहता है। गर्मी में भी इसका जल स्तर कभी नहीं गिरता। आसपास कोई बोर या जल स्रोत तक नहीं है। यहां सेवा देने वाले ग्रामीण भी इसी जल कुंड का पानी पीते हैं और उपयोग करते हैं और पूरी तरह स्वस्थ भी हैं। कुंड हमेशा पानी से लबालब रहता है।

यहां पहुंचना है काफी मुश्किल

सबसे बड़ी समस्या यहां तक पहुंचने के लिए सड़क के अभाव की सामने आती है। तो वही दूर दराज या बाहर से आने वाले लोग एकाएक यहां तक पहुंच नहीं पाते हैं। क्योंकि रास्ता भटकाने वाला होता है। आसपास मोबाइल का सही नेटवर्क भी नहीं मिलता। यहां तक पहुंचने के लिए आपको दो-तीन रास्ते मिल जाएंगे। बालोद से रानी माई मार्ग जो घोटिया की ओर जाती है वहां से भी पचेड़ा पेंड्री से होकर इस स्थल तक पहुंचा जा सकता है। तो दूसरा मार्ग आमाबाहरा कंजेली से आगे कच्ची मोड पर पगडंडी नुमा रास्ते से भी लगभग 4 किलोमीटर भीतर यह स्थल बना हुआ है। यहां तक बाइक कार दोनो से जा सकते हैं। बारिश में थोड़ी परेशानी ज्यादा होती है। पचेड़ा की ओर से आए तो मंदिर पहुंचने से पहले एक नाला पड़ता है। जो बाढ़ की चपेट में आता है तो रास्ता बंद हो जाता है। यहां बिजली और सड़क की सुविधा नहीं है। सोलर ऊर्जा के भरोसे ही काम चल रहा है। बरसात में यहां माता की सेवा करने वालों को काफी दिक्कत भी झेलनी पड़ती है।

12 गांव के लोग मिलजुलकर कर रहे इस जगह का विकास

माली माता मंदिर आसपास के 12 गांव के ग्रामीणों की आस्था का केंद्र बिंदु है। उन्ही गांव के लोगों और दानदाताओं की मदद से इस जगह को सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। शासन प्रशासन से अपेक्षित लाभ यहां नहीं मिल रहा है। तत्कालीन जनप्रतिनिधियों, विधायक द्वारा कुछ कार्य जरूर कराए गए हैं। लेकिन अभी भी यह पर्यटन स्थल उपेक्षित नजर आता है। इस जगह पर कुछ बड़े-बड़े संत महात्मा भी दर्शन करने हेतु पहुंच चुके हैं । लेकिन बालोद जिले के पर्यटन के नक्शे में यह एक तरह से सुविधाओं के अभाव में छिपा हुआ है। जिसे अगर शासन प्रशासन ध्यान दें तो पूरे छत्तीसगढ़ में इसे एक अनूठे जल स्रोत स्थल के रूप में पहचान मिल सकती है।

चर्म रोग दूर होने की मान्यता

मौके पर मौजूद मंदिर के द्वारपाल मोहन रजक ने बताया मालीपानी के पानी में नहाने के लिए ही लोग दूर-दूर से आते हैं। जिनकी आस्था है या जो लोग इस जगह के बारे में जानते हैं वे खासतौर से चर्म रोग से छुटकारा पाने के इरादे से यहां आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां के पानी से नहाने के बाद उनके चर्म रोग जैसे खास खुजली दूर हो जाते हैं। अक्सर छोटे-छोटे बच्चों को पालक यहां नहलाने के लिए लेकर आते हैं या यहां का पानी अपने घर ले जाते हैं।

मालीपानी का उद्गम कैसे हुआ किसी को मालूम नहीं

मालीपानी का यह स्थल कैसे अस्तित्व में आया? इस जगह का उद्गम कैसे हुआ? इस बारे में सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। इसके इतिहास को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं और कहानियां प्रचलित है। जिन पर इतिहासकारों को शोध की भी आवश्यकता है। कहते हैं वर्षों पहले कुछ संत यहां तप करने आए थे। तप करते-करते उनकी इन्हीं स्थानों में निधन हो गया। बाद में धीरे-धीरे ग्रामीणों को पता चला और इस स्थल की खोज हुई और माली पानी के बारे में जानकारी हुई। धीरे-धीरे लोगों ने इस जगह को संरक्षित करने का प्रयास किया। लोगों द्वारा जब देखा गया कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता है उसे चमत्कार की संज्ञा दी गई और धीरे-धीरे यह आस्था का केंद्र भी बन गया। मालीपानी माता के साथ-साथ यहां अब शिव मंदिर का भी भव्य निर्माण जारी है। इसके बनने के बाद इस जगह में पर्यटन को और बढ़ावा मिल सकता है।

जंगली जानवर करते हैं विचरण पर आज तक माता के मंदिर को नहीं पहुंचाए नुकसान

यहां के पुजारी सहित लोगों ने बताया कि घने जंगल के बीच यह स्थल है। आसपास काफी सुनसान और वनों से घिरा है। ऐसे में बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक के जंगली जानवर भी इस क्षेत्र में विचरण करते रहते हैं। तेंदुआ, हिरण, भालू आदि यहां देखे जा सकते हैं। लेकिन आज तक किसी भी जंगली जानवर ने ना तो माता के इस स्थल को नुकसान पहुंचाया है ना यहां सेवा देने वाले लोगों को। हालांकि रात में खतरा बना रहता है। इस जगह पर यहां तक जाने के लिए अगर पक्की सड़क बन जाए। नाले में पुल पुलिया बना दिया जाए तो क्षेत्र का और बेहतर विकास किया जा सकता है। इसकी मांग कई साल से स्थानीय ग्रामीण और मंदिर समिति से जुड़े लोग कर रहे हैं। वन विभाग, शासन प्रशासन, मुख्यमंत्री स्थानीय विधायक को भी इससे अवगत करा चुके हैं। लेकिन अब तक उचित परिणाम सामने नहीं आया है।

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