बालोद। नवरात्र की शुरुआत के साथ ही पूजा पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना कर दी गई है। गुरुवार को कलश यात्रा निकाल कर सभी पंडालों में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा संपन्न की गई। कलश स्थापना के साथ ही यहां पूजा-अर्चना का दौर भी शुरु हो गया है। नवरात्र का पर्व प्रतिवर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। नगर में जगह-जगह समितियों द्वारा पूजा पंडालों का निर्माण कराकर मां दुर्गा की आराधना की जाती है। इसके लिए पिछले एक महीने से तैयारियां की जा रही थीं। इस वर्ष भी कई स्थानों पर अलग-अलग समितियों द्वारा पूजा पंडालों का निर्माण कराया गया है जिनमें मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं स्थपित की गई हैं। गुरुवार को नवरात्र के प्रथम दिवस के अवसर पर सभी पंडालों में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई। नवरात्रि को दुर्गा की प्रतीक नारी शक्ति का उत्सव बताया गया है। जितेंद्र शर्मा ने कहा कि नारी ज्ञान-ऐश्वर्य-शौर्य की प्रतीक है। आज भी आदर्श भारतीय नारी में तीनों देवियाँ विद्यमान हैं। अपनी संतान को संस्कार देते समय उसका सरस्वती रूप सामने आता है। गृह प्रबन्धन की कुशलता में लक्ष्मी का रूप तथा दुष्टों के अन्याय का प्रतिकार करते समय दुर्गा का रूप प्रकट हो जाता है। अत. किसी भी मंगलकार्य को नारी की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया है। उन्होंने बताया कि धर्म के क्षेत्र में नारी हमेशा ही अग्रणी रही है। नारी के बिना धर्म कर्म की कल्पना व्यर्थ है। उन्होंने बताया कि आम तौर पर सिंह को देवी दुर्गा का वाहन माना जाता है परंतु भारतीय पुराणों में अलग-अलग दिनों के हिसाब से देवी के अलग-अलग वाहन पर सवार होकर आगमन देवी भागवत् में वर्णित है। इसके अनुसार यदि नवरात्र की शुरूआत शनि और मंगल को हो तो देवी घोड़े पर सवार होकर आती हैं वहीं गुरू और शुक्र की स्थिति में डोली में सवार होकर पधारती हैं। बुध को देवी का आगमन नौका पर माना जाता है वहीं रवि और सोम वार को नवरात्रि पड़े तो देवी का आगमन हाथी पर माना जाता है। इस बार गुरुवार को नवरात्रि प्रारंभ होने के कारण देवी डोली पर आरूढ़ होकर पधारी हैं। नवरात्र पर्व अपने स्वरूप को लघुतम से विराट की ओर ले जाने की प्रक्रिया है। भगवती के स्वरूप में ही सब कुछ विद्यमान है। जिसके कारण माता के शक्ति रूपों की साधना, आराधना, पूजा श्रवण, कथा, भजन, कीर्तन उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। शक्ति उपासना का अभिप्राय प्राकृतिक स्वभाव अर्थात निद्रा, आलस्य, तृष्णा, कामवासना, भ्रांति, अज्ञान, मोह, क्रोध पर विजय प्राप्त करना है। महिषासुर रूपी राक्षस कोध्र का प्रतीक है। वहीं रक्त बीज रूपी राक्षस काम का प्रतीक है। उक्त सभी दुर्गुणों को अर्थात अविधा को नाश करने के लिए शक्ति के गुण, सदबुद्घि, लज्जाा, पुष्टि, तुष्टि, शांति, श्रद्घा, कांति, सदवृति आदि गुणों का विकास करने के लिए ममतामयी माता की उपासना की जाती है। जिससे दुःखों का नाश और सद्युणों का विकास होता है।