डौंडी लोहारा। अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वाधान में आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी के अंतर्गत गायत्री प्रज्ञापीठ डौण्डीलोहारा में दस गर्भवती माताओं का पुंसवन संस्कार संपन्न कराया गया। गर्भवतियों को श्रेष्ठ संतान कैसे प्राप्त करें इस हेतु शास्त्र उक्त महत्व एवं प्रभाव बताते हुए आचार्य तुलसी साहू ने कहा कि प्राचीन काल में यह संस्कार ऋषि महर्षियों द्वारा कराया जाता था। जिससे उनकी संतान ऊर्जावान प्रखर बुद्धि संपन्न एवं देववृत्ती की होती थी। पुंसवन संस्कार वेद शास्त्र वर्णित 16 संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं सुभद्रा का पुंसवन संस्कार किया था जब गर्भ में अभिमन्यु था। उसके प्रभाव से अभिमन्यु के रूप में प्रखर संतान की उत्पत्ति हुई। अष्टावक्र जी जो समस्त वेदों के ज्ञाता थे। जब माता के गर्भ में थे उनका पुनः संस्कार ऋषि द्वारा किया गया था। जिससे अष्टावक्र जी जैसे ब्रह्म ज्ञानी पैदा हुए।
इस प्रकार राक्षस कुल में भागवत भक्त प्रहलाद जैसी संतान उत्पन्न हुई वर्णित है कि जब प्रहलाद मां के गर्भ में थे तब महर्षि नारद ने उनकी माता का पुंसवन संस्कार किया था। वह सारे संसार में भक्तिप्रहलाद के नाम विख्यात हुए एवं भक्त शिरोमणि कहलाए। इस तरह माता सीता का गर्भ संस्कार वाल्मीकि आश्रम में हुआ स्वयं महर्षि वाल्मीकि ने गर्भवती सीता का पुनः संस्कार किया। जिससे उन्हें लव कुश जैसे देवतुल्य संतानों की प्राप्ति हुई ।
इस अवसर पर रेखा साहू, सुमन साहू, श्रुति साहू, विदेशी राम चौहान, दूरदेशीराम प्रधान , रिया जगनायक भान आरेंद, टेमिन ढलनिया, भारती साहू,वैशणी नाग,विभा कोसमा, लक्ष्यद्वीप मंडावी,नीलम, देवबत्ती,निशा मालेकर आदि का सहयोग रहा।