महाविद्यालय में अनियमितताओं पर छात्रों का आंदोलन: क्या प्रबंधन पारदर्शिता और निष्पक्षता में असमर्थ है?
अर्जुन्दा। शहीद दुर्वासा निषाद शासकीय महाविद्यालय, अरजुंदा – छात्रों का भविष्य संवारने के उद्देश्य से स्थापित शैक्षणिक संस्थान में छात्रों के अधिकारों और आवाज को दबाने की कोशिशें निरंतर बढ़ती दिख रही हैं। 3 अक्टूबर को, महाविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं और प्रबंधन की लापरवाही के खिलाफ छात्रों द्वारा किया गया शांतिपूर्ण आंदोलन इस बात का उदाहरण है। छात्रों के अनुसार, सहायक कर्मचारी महेश पाटिल द्वारा टीसी और अंकसूची वितरण में पैसे की मांग की जा रही है, जो स्वयं महाविद्यालय की असंवेदनशीलता और अनियमितता का प्रतीक है।
आरोपों का गंभीरता से न लेना: प्रबंधन का अडिग रवैया
छात्रों ने इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन सौंपा, लेकिन महाविद्यालय प्रबंधन की प्रतिक्रिया चिंताजनक रही। आंदोलन के तुरंत बाद दो छात्रों – दुष्यंत देशमुख और दानेश्वर सिन्हा – का प्रभारी प्राचार्य व अनुशासन समिति द्वारा स्थानांतरण प्रमाणपत्र जारी करना न केवल उनके अधिकारों का हनन है, बल्कि आंदोलन को दबाने का भी प्रयास प्रतीत होता है। जिला प्रशासन ने अपर कलेक्टर को जांच के लिए नियुक्त किया, जिन्होंने निरीक्षण कर सुधार के आदेश दिए, फिर भी प्रबंधन की मनमानी जारी रही।
मीडिया माफीनामे की मांग और छात्रों पर दबाव
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्रों को अपनी बात कहने का अधिकार देने की बजाय, महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य ने टीसी को निरस्त करने के बदले में मीडिया में माफीनामा और ज्ञापन के खंडन की शर्त रख दी। यह सीधे-सीधे छात्रों की आवाज को दबाने का प्रयास है, जो एक शैक्षणिक संस्थान की मूल भावना के खिलाफ है।
छात्रों पर मानसिक उत्पीड़न: भविष्य के साथ खिलवाड़
डॉ. रश्मि सिंह, अनुशासन समिति व महेश पाटिल द्वारा छात्रों पर निरंतर मानसिक दबाव डालना, नोटिस भेजकर और व्यक्तिगत रूप से तंग करना, छात्रों के मनोबल और शिक्षा के प्रति समर्पण को कमजोर करने वाला है। छात्रों ने बताया कि एनएसएस के राष्ट्रीय कैंप में चयनित छात्र दानेश्वर सिन्हा का चयन निरस्त कर दिया गया, जो कि उनकी योग्यता और अधिकार का सीधा हनन है।
महाविद्यालय प्रबंधन पर सवाल
यह पूरी घटना न केवल प्रबंधन के फैसलों की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है बल्कि महाविद्यालय की अनुशासन प्रणाली और छात्र अधिकारों की रक्षा में असमर्थता को भी उजागर करती है। छात्रों ने उचित कार्रवाई की मांग की है, ताकि संस्थान में निष्पक्षता और पारदर्शिता स्थापित हो सके।
प्रबंधन के इन कदमों से यह प्रतीत होता है कि महाविद्यालय छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा में पूरी तरह से विफल हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संज्ञान लेने के बाद भी यदि स्थिति में सुधार नहीं होता, तो यह संस्थान के भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।