भरदाकला में हुआ पशु मेला प्रदर्शनी का आयोजन, आकर्षण का केंद्र रही दुनिया की सबसे छोटी गाय पुंगनूर
बालोद। बालोद जिले के ग्राम भरदाकला में पशुधन विकास विभाग जिला बालोद के द्वारा 14 दिसंबर शनिवार को जिला स्तरीय पशु मेला उत्सव प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के पशु पक्षियों जैसे दुधारू गाय, भैंस, बछिया, बछड़ा, बकरी, बकरा, मुर्गी, मुर्गा का प्रदर्शन प्रतियोगिता किया गया। साथ ही चयन समिति द्वारा चयनित उत्कृष्ट पशु पक्षियों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय सहित सांत्वना पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि जिला पंचायत बालोद की अध्यक्ष सोना देवी देशलहरा थी। अध्यक्षता जनपद गुंडरदेही के अध्यक्ष सुचित्रा साहू ने की। अति विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला पंचायत सदस्य संध्या भारद्वाज, कृषि स्थाई समिति जिला पंचायत बालोद की सभापति ललिता पीमन साहू, नगर पंचायत अर्जुंदा के अध्यक्ष चंद्रहास देवांगन, जनपद सदस्य दुर्गेश्वरी यादव, भरदाकला के सरपंच लक्ष्मीबाई मेरिहा, वरिष्ठ जन क्रांति भूषण साहू, विश्व हिंदू परिषद के प्रशांत भारद्वाज आदि मौजूद रहे ।
इस प्रदर्शनी में सबसे खास आकर्षण का केंद्र एक गाय रही। जिसे पुंगनूर गाय कहा जाता है और यह दुनिया की सबसे छोटी गाय और उन्नत नस्ल की मानी जाती है। इस गाय को कृत्रिम गर्भाधान द्वारा बालोद जिले में भी उत्पन्न किया गया है। इस गाय के पशुपालक गौरव माहेश्वरी ग्राम पैरी के हैं। तो वहीं कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता विभाग के घनश्याम यदु निवासी खेरूद हैं। जिनके प्रयास से बालोद जिले में इस तरह का पहला गाय उत्पन्न किया गया है। उन्होंने बताया कि दुनिया की सबसे छोटी नस्ल की यह गाय है। जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में पाई जाती है। इस जिले के पुंगनूर शहर पर इसका नाम रखा गया है। इसकी ऊंचाई 97 से 107 सेंटीमीटर और वजन करीब 170 से 240 किलोग्राम के बीच होती है। तथा दूध उत्पादन 1 से 2 किलोग्राम प्रतिदिन होती है। प्रदर्शनी में यह आकर्षण का केंद्र बना रहा। तो बताया जा रहा है कि बालोद जिले में कृत्रिम गर्भाधान के जरिए पुंगनूर गाय उत्पन्न करने का यह छत्तीसगढ़ में पहला मामला है।
इस तरह का प्रयास अन्य राज्यों में हो चुका है । इस गाय की कीमत लगभग 50000 बताई जाती है। आयोजन में पहुंचे अतिथियों को विभाग द्वारा मोमेंटो, स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। तो साथ ही किसानों और पशुपालकों को पशुपालन पर ध्यान देने और शासन की योजनाओं का लाभ उठाने की अपील भी की गई।
कार्यक्रम स्थल पर एक शपथ सेल्फी जोन भी बनाया गया था। जिसमें 21वीं पशु संगणना 2024-25 को लेकर शपथ लिखा गया था कि हम सभी इसमें पूर्ण सहयोग करेंगे। इस दौरान विभाग से उप संचालक डॉक्टर डी के सिहारे, वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर टीडी देवांगन, डॉ कमलेश ठाकुर, डॉ बीके विश्वकर्मा, डॉ अभिषेक मिश्रा, , अर्जुंदा पशु चिकित्सालय के प्रभारी डॉ एसके नायक, डॉ जीडी कौशल, डॉ चूड़ामणि चंद्राकर , जिला कार्यक्रम नोडल अधिकारी डॉ बीएस नायक , गुंडरदेही विकासखंड के एवीएफओ बी आर सिन्हा, एचके मधुकर, पूर्णानंद पटेल, शिव निषाद, जाधव कुजूर, चैतन्य साहू सहित सभी स्टाफ, परिचारक, ड्रेसर गौ सेवक आदि मौजूद रहे।
इन पशुपालकों को किया गया सम्मानित
कार्यक्रम के दौरान प्रतियोगिता में प्रथम द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विभिन्न पशुपालकों को सम्मानित किया गया। जिसमें भारतीय नस्ल गाय के लिए टोमन यादव, सोनू साहू, वासुदेव साहू, विदेशी संकर नस्ल गाय के लिए अर्जुंदा के राजेंद्र ठाकुर, दुधारू भैंस के लिए संतोष शर्मा, छवि साहू, बैल जोड़ी के लिए तिलोक देवांगन, तूका धनकर, भगवती साहू, भैंसा जोड़ी के लिए दसरू राम साहू, कलोर के लिए गेंदलाल साहू ,खेमलाल यादव, दिलीप धनकर, वत्स गौवंशिय हेतु संदीप ठाकुर, वीरेंद्र साहू, दिलीप धनकर, भैंस वंशिय के लिए ठमेश ठाकुर, नारद राम, नाथूराम साहू, विशिष्ट वर्ग पुंगलूर के लिए गौरव माहेश्वरी को सम्मानित किया गया। साथ ही बकरा बकरी के लिए विनोद देवांगन, डालचंद सावलकर, हेमंत ठाकुर, भेड़ भेड़ी के लिए लाल धनकर, मनहरण लाल धनकर, मुर्गा मुर्गी के लिए बंटी चंद्रवंशी, गफूर खान, जैन कुमार, कुत्ता के लिए खिलानंद साहू आदि सम्मानित किए गए।
जानिए दुनिया की सबसे छोटी, प्यारी और अद्भुत गाय पुंगनूर के बारे में
डॉक्टर एसके नायक और कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता घनश्याम यदु ने बताया कि यह गाय देश में संख्या में जितनी कम है, लोकप्रियता में उतनी ही ज्यादा है । दुर्लभ है इसलिए थोड़ी महंगी भी है । दरअसल, पुंगनूर आंध्रप्रदेश के चित्तूर में एक जगह का नाम है, जहां से यह नस्ल जुड़ी है । बरसों पहले इस नस्ल को पुंगनूर क्षेत्र के शासकों द्वारा विकसित किया गया था और आज भी यह ज्यादातर इसी इलाके और इसके आसपास तक सीमित है । यह नस्ल कुछ साल पहले तक खत्म होने के कगार पर थी लेकिन राज्य और केंद्र सरकार के प्रयासों से अब इसकी ठीक-ठाक तादाद है । जहां 1997 में सिर्फ 21 गायों की पहचान की गई थीं वहीं 2019 में हुई 20वीं पशुधन गणना में इनकी संख्या 13,275 बताई गई है । इससे पांच साल पहले तक यह मात्र 2,828 ही थी । आंध्र प्रदेश सरकार पुंगनूर नस्ल को बढ़ावा देने के लिए पशुपालकों को वित्तीय सहायता भी देती है । खास बात यह भी है कि पुंगनूर गाय के दूध से बने मावे से ही तिरुपति बालाजी में लड्डू बनाए जाते हैं। ऐसा वहां वर्षों से हो रहा। यह गाय शुष्क वातावरण में भी आसानी से रह लेती हैं और सूखे चारे पर जीवित रह सकती हैं। उम्र 15 से 25 वर्ष के बीच रहती है। गाय की अन्य नस्लों की अपेक्षा दूध कम देती हैं लेकिन दूध पोषक तत्वों और वसा से भरपूर होता है। आम गाय के दूध में वसा 3 से 5 प्रतिशत होता है, जबकि पुंगनूर के दूध में 8 प्रतिशत तक है । डेयरी व्यवसाय के लिए यह फायदे का सौदा हो सकता है । दूध में अधिक फैट और औषधीय गुण की वजह से अधिक कीमत पर बेचा जा सकता है । दूध में ज्यादा वसा होना डेयरी उत्पादों के काम की चीज है। पुंगनूर गाय के मूत्र में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं और इसका प्रयोग आंध्र प्रदेश के किसान फसलों पर छिड़काव के लिए करते हैं। अर्थात पुंगनूर का मूत्र तक बिक जाता है । यही नहीं गोबर भी उपयोगी है और बाकायदा बिकता है ।